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________________ 95...कहीं सुनसान जाए भाई-बहन पति-पत्नी बन कर काल व्यतीत करने लगे। इतने में तो उस देव (मातुश्री के जीव) ने अपने अवधिज्ञान से देखा और मन में विचार किया कि ये दोनों पूर्वभव में मेरे पुत्र-पुत्री थे और अब इस प्रकार के अनैतिक वैषयिक पाप से वे नरक में जायेंगे। अतः उनको सन्मार्ग पर लाने के लिए उस देव ने पुष्पचूला को रात्रि में नरक का स्वप्न दिखाया। उससे भयभीत बनी हुई पुष्पचूला ने सुबह जाकर राजा से बात कही। राजा ने नरक का स्वरूप जानने के लिए अन्य दर्शनों के योगियों को बुलाया। उन्होंने कहा-“हे राजन् ! शोक, वियोग, रोग आदि की परवशता पुष्पचूला को देव ने स्वप्न में नरक का दृश्य दिखाया। ही नरक का दुःख है।" पुष्पचूला ने कहा- "मैंने जो नरक का स्वप्न देखा है, वह ऐसे दुःखों से सर्वथा भिन्न है, वैसे दुःखों का तो अंशमात्र भी यहाँ नहीं दिखता है।' तब जैनाचार्य अर्णिकापुत्र को बुला कर पूछा। उन्होंने यथावस्थित जैसे दुःख रानी ने स्वप्न में OPEOOOOOननननन-CG देखे थे, वैसे ही सातों नरक के भयंकर दुःखों का वर्णन किया। Jain Education International Personal f y
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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