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________________ 93...कहीं मुनमा न जाए साथ दैहिक संबंध कर लिया। दुःख रूप नहीं लगता। जैसे उसकी सज़ा यही है कि, मैं बड़ा ऋण हो जाय, तो छोटा जाज्वल्यमान चिता में जलकर भस्म ऋण, ऋण रूप में नहीं हो जाऊँ।" यह बात प्रधान वेश्या सताता।" उसने बगीचे में दोडने के कारण एक ची का पानी का मटका फूट गया, वह गती है। को मालूम हुई। उसने कामलक्ष्मी को और दूसरी कामलक्ष्मी का दही का मटका फुट गया, तो भी वह हंसती है, बैठकर स्वजीवनी सुनाई। वह पूछने वाला पुरोहित और कोई स्वस्थ हुई। तब ग्वाले ने उसे अपनी नहीं, उसका ही पुत्र वेदविचक्षण पत्नी बना ली। था। सारा वृत्तांत सुनकर उसको एक बार वह मटका भर कर मार्मिक चोट लगी। अरर ! यह दही बेचने गई। उसके साथ एक मैंने क्या किया ? माता के साथ दूसरी स्त्री पानी का मटका भरकर संभोग ! धिक्कार हो मेरी विषय गोवालने डूबती हुई कामलक्ष्मी को पकड़कर बाहर निकाला। चली आ रही थी, उनके पीछे हाथी वासना को। मां बेटे दोनों खूब समझाया, परन्तु वह न मानी। दौड़ता हआ आ रहा था। दोनों करूणा के भंडार तुल्य पूय उसने नदी के बीच में चिता जलाई स्त्रियां घबराहट से दौड़ने लगी। गुरुदेव से आलोचना-प्रायश्चित्त कोमलक्ष्मी नदी के बीच चिता जलाकर और उसमें कूद पड़ी। संयोग से उसी इतने में उनके मटके फूट गये। पानी लेकर चारित्र स्वीकार कर उसमें कूदने जा रही थी कि उतने में समय भारी बरसात आ गई और का मटका जिसका फटा था. वह रोने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में जोरदार बारिश हुई व नदी में बाढ़ आ गई। चिता बुझ गई। नदी में बाढ़ आने से लगी और दही का मटका जिसका गये। जिस प्रकार हृदय में वह युवक तो चला नदी के प्रवाह में कामलक्ष्मी बह गई। फूटा था, वह हँसने लगी। एक | किसी भी प्रकार का शल्य या गया। उसके बाद कामलक्ष्मी एक ग्वाले की नज़र नदी के प्रवाह में पुरोहित आकर उसके हँसने का शरम रखे बिना शुद्ध भाव से के मन में विचार आया कि बहती हुई उस पर पड़ी और उसने कारण पूछने लगा, तब उसने कहा- आलोचना लेकर माता-पुत्र "अरर ! यह मैंने भयंकर भूल उसको खींच कर बाहर निकाली। "मैं किस-किस दुःख को रोऊँ, शुद्ध बने। उसी प्रकार अपने की हैं, अरर ! मैंने पुत्र के अनेक उपचार करने पर कामलक्ष्मी बहत दुःख आ जाने से थोडा दःख, को भी लज्जा रखे बिना युद्ध आलोचना लेनी चाहिए।ary cary For Personal S ale Only
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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