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________________ गर्भपात के किस्सों में कितनी ही कन्याएँ एवं माताएं अज्ञानतावश या जानबूझ कर गलत इन्फोर्मेशन देती है; मगर वे कहती है उससे कहीं अधिक परिपक्व बालक निकलता है । कितने ही केसों में बालक मरने की जबरदस्त मनाही करता है और यदि उसका भाग्य प्रबल हुआ तो कोई दयालु मिल जाता है और उसे दत्तक ले लेता है । एक बार एक परिपक्व गर्भ का मस्तक चूसण पद्धति से अलग हो गया और फिर आधे घंटे तक उसका धड़ श्वास लेने के लिये तड़फता रहा । दिन के अंत में ऑपरेशन थियेटर का संपूर्ण मानव - कचरा (?) खचाखच भरी हुई बाल्टियों में से निकालकर मृत्यु पायी हुई अथवा तड़फती हुई मनुसंतानों को, या तो दफना दिया जाता है या भट्ठी में डाल कर जला - भुना कर राख के ढेर में परिवर्तित कर दिया जाता है । जिससे सामान्य जनता की नजरों में यह पैशाचिक कृत्य.... ताण्डव लीला का आभास तक नहीं हो पाता । अहिंसा का दर्शन अत्यन्त सूक्ष्म रूप से भारत के नस-नस में बसा हुआ था । यहीं पर जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें लोग पंचेन्द्रिय ही नहीं एकेन्द्रिय जीव (पेड़, पौधे, वनस्पति) आदि को मारने में भी हिंसा मानते हैं । इसीलिये बोलते समय मुंहपति का उपयोग करते हैं और वर्ष में चार महिने तक हरीसब्जी का भी त्याग करते हैं । इस देश में मुर्गी का अण्डा, माँसाहार गिना जाता है । यहाँ पर लोग दया से कबूतरों को दाना, कुत्ते व गायों को रोटी चींटीयों के दर पर शक्कर - आटा और मछलियों को तिल के लड्डू खिलाते थे, यही नहीं, सर्प जैसे जहरीले प्राणी को भी दया से दूध पिलाते थे । जिस बकरी के पेट में बच्चा हो उस बकरी को कत्ल करने की 'दीन' ने मनाई लिखी । लोग अपने सगर्भ पशुओं को कसाई - घर बेचते नहीं । प्रयोगशालाओं में प्रयोग के लिये बंदरों के निर्यात पर इस देश की दयाप्रिय जनता के आग्रह से भारत सरकार को प्रतिबन्ध लगाना पड़ा । और अब कबूतरों की निर्यात बंदी भी होनेवाली है । यहाँ मोरों को मारना गुनाह है और बाघ, सिंह, चीता आदि के शिकार करने पर सख्त पाबन्दी है । बूढी लूली - लंगड़ी - अपंग गायों के लिये अनेक पिंजरापोल गौशालाओं को दयालु सुखी - दानवीर सेठ चलाते हैं । गौवंश का कत्ल बन्द करवाने के लिये देश के कई आचार्य, संत एवं महंत उपवास पर उतरते हैं और अफसोस इस बात का है कि इसी गाँधी बापू के अहिंसक देश में मानववंश को क्रूरतापूर्वक सरे आम कत्ल करने के लिए सरकार प्रोत्साहित करती है, विज्ञापन देती है; आंकड़े प्रकाशित करती है और तदर्थ अपने आपको अत्यन्त गौरवान्वित महसूस करती है । इतना ही नहीं, अपितु इस खूनी बचाओ ... बचाओ... !! Jain Education International For Personal & Private Use Only - 19 www.jainelibrary.org
SR No.004218
Book TitleBhrun Hatya Maha Paap Bachao Bachao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmiratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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