________________
में जीवने अजीव सद्दह्या, प्ररुप्या, अजीवने जीव सद्दह्या, प्ररुप्या, धर्मने अधर्म अने अधर्म ने धर्म सद्दह्या, प्ररुप्या, साधुने असाधु अने असाधुने साधु साह्या, प्ररुप्या तथा उत्तम पुरुष, साधु, मुनिराज, साध्वीजीनी सेवाभक्ति यथाविधि मानतादि नहि करी, नहि करावी, नहि अनुमोदी तथा असाधुओनी सेवा-भक्ति आदि मानता पक्ष कर्यो, मुक्तिना मार्गमां संसारनो मार्ग यावत् पचीस मिथ्यात्वमांना मिथ्यात्व सेव्या, सेवराव्या, अनुमोद्या, मने करी वचनेकरी कायाए करी, पचीस कषाय संबंधी, पचीस क्रिया संबंधी, तेत्रीस आशातना संबंधी ध्यानना ओगणीस दोष, वन्दनाना बत्रीस दोष, सामायिकना बत्रीस दोष, पोसहना अढार दोष संबंधी मने, वचने, कायाए करी जे कोई पाप दोष लाग्या, लगाव्या, अनुमोद्या, ते मने धिक्कार, धिक्कार, वारंवार मिच्छामि दुक्कडं.
महामोहनीय कर्मबन्धनां त्रीस स्थानकने मन, वचन, कायाए करी सेव्यां, सेवराव्यां, अनुमोद्यां, शीलनी नववाड, आठ प्रवचन मातानी विराधनादिक तथा श्रावकना अकवीश गुण अने बार व्रतनी विराधनादि मन, वचन अने काया करी, करावी अनुमोदी तथा त्रण अशुभ लेश्यानां लक्षणोनी अने बोलोनी
60
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org