SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (v) विकल्प, स्वच्छंदता, अतिपरिणामीपन, इत्यादि कारण बारबार जीव को उस मार्ग पर पतन के हेतु बनते हैं या ऊर्श्वभूमिका प्राप्त नहीं होने देते। ___ "क्रियामार्ग में असदअभिमान, व्यवहाराग्रह सिद्धिमोह, पूजासत्कारादि योग और दैहिकक्रिया में आत्मनिष्ठादि दोषों का सम्भव रहा है । "इन्हीं कारणों से किसी एक महात्मा को छोड़ते हुए अनेक विचारवान जीवों ने भक्तिमार्ग का आश्रय लिया है और आज्ञाश्रितपन या परमपुरुष सद्गुरु के प्रति सर्पिण स्वाधीनपन शिरसावंद्य देखा है और वैसे ही बरते हैं तथापि वैसा योग प्राप्त होना चाहिए, वरन् जिसका एक समय चितामणि जैसा है वैसा मनुष्यदेह उल्टे परिभ्रमणवृद्धि का हेतु बन जायेगा।" ___ "उस आत्मज्ञान को प्रायः दुर्गम्य देखकर निष्कारण करुणाशील ऐसे उन सत्पुरुषों ने भक्तिमार्ग प्रकाशित किया है जो सभी अशरण को निश्चल शरणरूप है और सुगम है।" पराभक्ति "परमात्मा और आत्मा का एक रूप हो जाना(!) वह पराभक्ति की अंतिम सीमा है। एक वही लय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004217
Book TitleBhakti Kartavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapkumar J Toliiya
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy