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अंजनानी देशी
हुं अपराधी अनादि को, जनम जनम गुना किया भरपूरके, लूटियां प्राण छ कायना, सेव्यां पाप अढारां करुर के.
(गद्य मूल हिंदी भाषा में छे तेनु गुजराती भाषान्तर लीधुछ.)
आज सुधी आ भवमां, पहेलां संख्याता, असंख्याता अनें अनंता भवमां कुगुरु-कुदेव अने कुधर्मनी सद्दहणा, प्ररूपणा, फरसना सेवनादिक संबंधी पापदोष लाग्या ते सर्वे मिच्छामि दुक्कडं.
अज्ञानपणे, मिथ्यात्वपणे, अव्रतपणे, कषायपणे, अशुभ योगे करी, प्रमाद करी, अपछंद,-अविनीतपणुं में कयु ते सर्वे मिच्छामि दुक्कडं.
श्री अरिहंत भगवंत वीतराग केवलज्ञानी महाराजनी, श्री गणधरदेवनी, श्री आचार्यनी, श्री धर्माचार्यनी, श्री उपाध्यायनी अने श्री साधु-साध्वीनी, श्रावक-श्राविकानी, समदृष्टि साधर्मी उत्तम पुरुषोनी, शास्त्रसूत्रपाठनी, अर्थपरमार्थनी, धर्म संबंधी अने सकल पदार्थोनी अविनय, अभक्ति, आशातनादिक करी,
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