SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चार कोश ग्रामांतरे, खरची बांधे लार' ; परभव निश्चय जावणो, करीओ धर्म बिचार. १२ रज विरज ऊंची गई, नरमाई के पान' ; .. पत्थर ठोकर खात है, करडाई के तान'.. १३ अवगुन उर धरिये नहि, जो होवे विरख बबूल' ; .. गुन लीजे कालु कहै, नहि छाया में सूल. १४ जैसी जापे वस्तु है, वैसी दे दिखलाय ; वाका बुरा न मानिओ, कहां लेने वो जाय? १५ गुरु कारीगर सारिखा, टांकी वचन विचार; पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार. १६ संतन की सेवा कियां प्रभु रीझत हैं आप जाका बाल खिलाई. ताका रीझत बाप. भवसागर संसार में दीवा श्री जिनराज; उद्यम करी प्होंचे तीरे, बैठी धर्म जहाज़. निज आतमकुदमन कर, पर आतमकु चीन; परमातमकु भजन कर, सोई मत परवीन. १९ समजु शंके पापसे. अणसमजु हरखंत; वे लूखां वे चीकणां. इणविध कर्म बधंत. २० १ साथे २ नरमाशपणाथी ३ तन्मयपण ४ बावलनु वृक्ष ५ टांकणारूप वचनगण ६ डरे 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004217
Book TitleBhakti Kartavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapkumar J Toliiya
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy