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ज्यु बंदर मदिरा पिया, भूत लग्यो कौतुक करे,
बिछु डंकीत गात, ; कर्मों का उत्पात.
पावे नाना रूप;
कर्म संग जीव मूढ है, कर्म रूप मलके टले, चेतन सिद्ध सरूप.
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शुद्ध चेतन उज्ज्वल दरव', रह्यो कर्म मल छाय., तप संयम से धोवतां, ज्ञानज्योति बढ़ जाय'.
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ज्ञान की जाने सकल, दर्शन श्रद्धा रूप, चारित्रथी आवत रुके, तपस्या क्षपन सरूप. कर्म रुप मलके शुधे, चेतन चांदी रूप; निर्मल ज्योति प्रगट भयां, केवल ज्ञान अनूप; मूसी पात्रक सोहगी, फूकांतनो उपाय ; राम चरण चारू मिल्या, मैल कनकको जाय. कर्म रूप बादल मिटे, प्रगटे चेतन चंद; ज्ञानरुप गुन चांदनी, निर्मल ज्योति अमंद. राग द्वेष दो बीज से, कर्म बंध की व्याध' ; ज्ञानातम वैराग्य से, पावे मुक्ति समाध अवसर बीत्यो जात है, पुण्य छतां पुण्य होत है,
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अपने वश कछु होत; दीपक दीपक ज्योत.
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१. द्रव्य २ वधी जाय ३ सोनुं गाळवानी कुलडी ४ व्याधि, रोग ५ समाधि सुख ६ पोताना हाथमां अवसर होय त्यारे कई बने छे
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