SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माफ करो सब माहरा आज तलकना दोष ; दीनदयालु दो मुझे श्रद्धा शील संतोष. आतम निंदा शुध्ध भनी गुनवंत वंदन भाव ; राग द्वेष पतला करी, सबसे खीमत खिमाव'. छूटुं पिछला पाप से, नवां न बांधु कोई ; श्री गुरुदेवप्रसादसे, सफल मनोरथ होई. परिग्रह ममता तजी करी, पंच महाव्रत धार; अंत समय आलोचना, करूं संथारो सार. तीन मनोरथ कह्या. जो ध्यावे नित मन्त्र; शक्तिसार वर्ते सही, पावे शिवसुख धन्न. २१ अरिहा देव, निग्रंथ गुरू, संवर निर्जर धर्म; आगम श्री केवलि कथित, अही जैन मत मर्म. २२ आरंभ विषय कषाय तज, शुद्ध समकित व्रत धार; जिन आज्ञा परमान कर, निश्चय खेवो पार. २३ क्षण निकमो रहनो नहि, करनो आतम काम ; भणनो गुणनो शीखनो, रमनो ज्ञानाराम. २४ अरिहा सिध्ध सब साधुजी, जिनाज्ञा धर्मसार; मंगलिक उत्तम सदा, निश्चय शरणां चार. घडी घडी पलपल सदा, प्रभु स्मरण को चाव; नरभव सफलो जो करे, दान शील तप भाव. २६ २५ १ क्षमी क्षमावी २ अनुसार, प्रमाणे ३ उतरो ४ उत्साह A1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004217
Book TitleBhakti Kartavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapkumar J Toliiya
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy