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देह छतां जेनी दशा, वर्ते देहातीत; ते ज्ञानीनां चरणमां, हो वंदन अगणित.
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श्री नडियाद, आ. वद १ गुरू. १९५२
परम पुरूष प्रभु सद्गुरूं, परम ज्ञान सुखधाम, जेणे आप्यु भान निज, तेने सदा प्रणाम..
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