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वधारे शुं कहेवुं ? जे जे पूर्वना भवांतरे भ्रांति पणे भ्रमण क; तेनु स्मरण थतां हवे केम जीववुं ए चिंतना थई पड़ी छे. फरी न ज जन्मवु अने फरी एम. नज करवु एवं दृढत्व आत्मामां प्रकाशे छे, पणं केटलीक निरूपायता छे त्यां केम करवुं ? जे दृढ़ता छे ते पूर्ण करवी ; जरूर पूर्ण पडवी ए ज रटण छे, पण जे कई आडुं आवे छे ते कोरे करवुं पडे छे अर्थात् खसेड पंडे छे, अने तेमां काळ जाय छे, जीवन चाल्युं जाय छे, एने न जवा देवु. ज्यां सुधी यथायोग्य जय न थाय त्यां सुधी एम दृढता छे तेनु केम करवु ? कदापि कोई रीते तेमांनु कंई करीए तो तेव् स्थान क्यां छे के ज्यां जईने रहीए ? अर्थात् तेवा संतो क्यां छे, के ज्यां जईने ए दशामां बेसी तेनु पोषण पामीए ? त्यारे हवे केम करवु ?
" गमे तेम हो, गमे तेटलां दुःख वेठो, गमे तेटला परिषह सहन करो, गमे तेटला उपसर्ग सहन करो, गमे तेटली व्याधिओ सहन करो, गमे तेटली उपाधिओ आवी पडो, गमे तेटली आधिओ आवी पडो, गमे तो जीवनकाळ एक समय मात्र हो, अने दुर्निमित्त हो, पण एम करवु ज.
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'त्यां सुधी हे जीव ! छूटको नथी.'
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