________________
प्रकाशक छो. हुं मात्र मारा हितने अर्थे तमारी साक्षी क्षमा चाहुं छु. अक पळ पण तमारां कहेलां तत्त्वनी शंका न थाय. तमारा कहेला रस्तामा अहोरात हुरहुं, अज मारी आकांक्षा अने वृत्ति थाओ! हे सर्वज्ञ भगवान! तमने हुं विशेष शुकहुं ? तमाराथी कांई अजाण्यु नथी. मात्र पश्चातापथी हुं कर्मजन्य पापनी क्षमा ईच्छुछु.
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः . वि. सं. १६४२
, -श्रीमद् राजचन्द्र
आलोचना
प्रथम संवत्सरी अने ए दिवस पर्यत संबंधी मां कोई पण प्रकारे तमारो अविनय, आशातना, असमाधि मारा मन, वचन, कायाना कोई पण योगाध्यवसायथी थई होय तेने माटे पुनः पुनः क्षमावु छु. . __ अंतर्ज्ञान थी स्मरण करतां एवो कोई काळ जणातो नथी वा सांभरतो नथी के जे काळमां, जे समयमां आ जीवे परिभ्रमण न कयु होय, संकल्प-विकल्पनु रटण न कयु होय, अने ए वडे 'समाधि' न भूल्यो होय. निरंतर ए स्मरण रहया करे छे, अने ए महा वैराग्य ने आपे छे.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org