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सद्गुरू वंदन
अहो ! अहो! श्री सद्गुरू, करूणासिंधु अपार; आ पामर पर प्रभु कर्यो, अहो! अहो! उपकार; शु प्रभु चरण कने धरूं, आत्माथी सौ हीन; ते तो प्रभुले आपीओ, वर्तुं चरणाधीन; आ देहादि आजथी, वर्तो प्रभु आधीन; दास दास हुं दास छं, आप प्रभुनो दीन ; षट् स्थानक समजावीने, भिन्न बताव्यो आप ; म्यान थकी तरवारवत्, अ उपकार अमाप; जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनन्त ; समजाव्युं ते पद नमु, श्री सद्गुरू भगवंत ; परम पुरुष प्रभु सद्गुरू, परमज्ञान सुखधाम; जेणे आप्यु भान निज, तेने सदा प्रणाम ; देह छतां जेनी दशा, वर्ते देहातीत; ते ज्ञानीनां चरणमां, हो वंदन अगणित.
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