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ताए
बहुदुहु सजाउ
उसके द्वारा . बहुत दुःख प्राप्त किया गया
कह
मज्झु नियवय
निव्वाहु
होसइ
करं
(ता) 3/1 स [(बहु)-(दुह) 1/1] (संजाअ) भूकृ 1/1अनि अव्यय (अम्ह) 6/1 स [(निय)वि-(वय) 6/1] • (निव्वाह) 1/1 (हो) भवि 3/1 अक अव्यय अव्यय [(देव)-(गुरु) 5/2] (विमुह) 4/2 वि [(ससुर)+(आइ)] [(ससुर)-(आइ) 4/2] [(धम्म)+(उवएसु)] [(धम्म)-(उवएस) 1/1] (भव) भवि 3/1 अक अव्यय (ता) 1/1 स (वियार) 1/1 अक
निज व्रत का निर्वाह होगा कैसे अथवा देवगुरु से विमुख ससुर आदि के लिए
देवगुरुहं विमुहहं ससुराइ
धम्मोवएसु
धर्मोपदेश
भवेसइ
होगा इस प्रकार वह विचार करती है
सा
वियारेइ
3. एगया संसारु
एक बार संसार असार (है) लक्ष्मी
असारु लच्छी
.भी
असारा
असार (है)
देह
अव्यय (संसार) 1/1 (असार) 1/1 (लच्छी) 1/1 अव्यय (असार(स्त्री)असारा) 1/1 (देह) 1/1 अव्यय (विणस्सर) 1/1 (एक्क) 1/1 वि (धम्म) 1/1
अव्यय [(परलोअ)-(पवन्न) 4/2 वि] (जीव) 4/2 (आहार) 1/1 अव्यय
भी विनाशशील (है)
विणस्सरु
एक्कु
धम्मु
धर्म
च्चिय
ही
परलोअपवनहं जीवह आहारु
परलोक जानेवाले जीवों के लिए आधार
इस प्रकार
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अपभ्रंश अभ्यास उत्तर पुस्तक
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