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________________ 9. 10. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 54 श्लेष अलंकार - जब वाक्य में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें तो ऐसे अनेकार्थी शब्द में श्लेष अलंकार होता है। रूपक अलंकार- रूपक अलंकार में उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाता है अर्थात् उपमेय को ही उपमान बता दिया जाता है। अभ्यास ( ख ) यमक अलंकार - जहाँ पद एक से हों किन्तु उनमें अर्थ भिन्न-भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है । उपमा अलंकार- जहाँ उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी उपमेय के साथ उपमान के सादृश्य का वर्णन हो वहाँ उपमा अलंकार होता है अर्थात् उपमेय और उपमान में समानता ध्वनित होती है । उपमा में चार तत्त्वों का होना आवश्यक है 1. उपमेय 2. उपमान 3. साधारण धर्म और 4. वाचक शब्द | विभावना अलंकार - जहाँ कारण के अस्तित्व के बिना कार्य की सिद्धि हो वहाँ विभावना अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार- जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना अर्थात् उत्कृष्ट कल्पना का वर्णन हो वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अपभ्रंश में इव, णं, णावइ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। सन्देह अलंकार - जहाँ उपमेय में उपमान होने का सन्देह किया जाए वहाँ सन्देह अलंकार होता है। भ्रान्तिमान अलंकार - नितान्त सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान की भ्रांति ही भ्रान्तिमान अलंकार है । श्लेष अलंकार - जब वाक्य में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें तो ऐसे अनेकार्थी शब्द में श्लेष अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार - जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना अर्थात् उत्कृष्ट कल्पना का वर्णन हो वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अपभ्रंश में इव, णं, णावइ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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