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________________ 8. 9. 10. 11. 1. 2. 38 माया/माय (1/1) पुत्ती /पुत्ति / पुत्ती हे / पुत्ति (4 / 1) कहा / कह (2/1) कहइ / कहेइ / कहए अथवा संसइ / संसेइ / संसए अथवा चक्ख /चक्खेइ /चक्खए। नियम 8 - कह ( कहना ), संस ( कहना ), चक्ख ( कहना) क्रियाओं के. योग में जिस व्यक्ति से कुछ कहा जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। नरिंद/नरिंदा /नरिंदु/नरिंदो (1 / 1 ) भोयणत्थं (4 / 1 ) बइसइ / बइसेइ / बइसए । नियम 9 चतुर्थी के अर्थ में अत्थं (अव्यय) का प्रयोग भी होता है । सो (1 / 1 ) नरिंद / नरिंदा / नरिंदसु / नरिंदासु / नरिंदहो / नरिंदाहो / नरिंदस्सु (4 / 1 ) ईसइ / ईसेइ / ईसए । नियम 4 - ईस ( ईर्ष्या करना) क्रिया के योग में जिससे ईर्ष्या की जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। रहुणन्दण/रहुणन्दणा/रहुणन्दणु / रहुणन्दणो ( 1 / 1 ) असच्च/असच्चा / असच्चसु/असच्चासु/असच्चहो / असच्चाहो / असच्चस्सु (4 / 1 ) असूअइ / असूएइ / असूअए । नियम 4- असूअ (घृणा करना) क्रिया के योग में, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । जिससे घृणा पंचमी विभक्तिः अपादान कारक अभ्यास 4 गिरिहे / गिरीहे (5 / 1 ) सरिआ / सरिअ (1 / 1 ) णीसरइ/णीसरेइ / णीसरए । नियम 1- जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कहते हैं। अपादान को बताने वाले संज्ञापद को पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। की जाए पत्तहे/पत्ताहे/पत्तह/पत्ताह (5 / 1 ) बिन्दु / बिन्दू (1/2) पडहिं/पडन्ति / पडन्ते / पडिरे । Jain Education International नियम 1- जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कहते हैं। अपादान को बताने वाले संज्ञापद को पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। For Personal & Private Use Only अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तकं www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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