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________________ उदाहरण - साव-सलोणी गोरडी नक्खी क वि विसगंठि। भडु पच्चलिओ सो मरइ जासु न लग्गइ कंठि। - हेमचन्द्र अर्थ - सर्व सलोनी गोरी कोई नोखी विष की गाँठ है। भट प्रत्युत (बल्कि) वह मरता है जिसके कंठ में (से) वह नहीं लगती। व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में वस्तुतः विरोध न होते हुए भी विरोधी बात होने का आभास हो रहा है इसलिए यहाँ विरोधाभास अलंकार है। १.सन्देह अलंकार - जहाँ उपमेय में उपमान होने का सन्देह किया जाए वहाँ सन्देह अलंकार होता है। उदाहरण - किं तार तिलोत्तम इंदपिया, किं णायवहू इह एवि थिया । किं देववरंगण किं व दिही, किं कित्ति अमी सोहग्गणिही। -सुदंसणचरिउ 4.4.1-2 अर्थ - (मनोरमा का परिचय) यह तारा है या तिलोत्तमा या इन्द्राणी? या कोई नागकन्या यहाँ आकर खड़ी हो गयी है अथवा यह कोई उत्तम देवांगना है अथवा यह स्वयं धृति है या कृति या सौभाग्य की निधि? व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में मनोरमा को देखकर सन्देह की स्थिति बनी हुई है कि यह कौन है -तारा है, तिलोत्तमा है, इन्द्राणी है अथवा नागकन्या है? इसलिए यहाँ सन्देह अलंकार है। 10. भ्रान्तिमान अलंकार - नितान्त सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान .. की भ्रांति ही भ्रांतिमान अलंकार है। अपभ्रंश अभ्यास सौरभं (छंद एवं अलंकार) .. (33) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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