SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (IV-V) जैन आचार आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाता है, इसलिए उसका रहस्यात्मक महत्त्व है (VI) यद्यपि जैनधर्म की अपनी स्वयं की विशेषताएँ हैं फिर भी जैन और अजैन के नैतिक सिद्धान्तों के तुलनात्मक अध्ययन से निश्चय ही लाभकारी परिणाम उत्पन्न होते हैं (VII) जैन आचार सिद्धान्तों का दूरगामी सामाजिक तात्पर्य है और उनका आधुनिक समस्याओं के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाना उपयुक्त है। जैनधर्म के तीन सिद्धान्त- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त यदि उचित रूप से समझे जाएँ और उनको व्यवहार में क्रियान्वित किया जाय तो वे किसी भी व्यक्ति को ऐसे सम्माननीय नागरिक बना सकते हैं, जो अपनी जीवन दृष्टि में मानवीय होते हैं और परिग्रह वृत्ति से अनासक्त होते है और अपनी मानसिक स्थिति में उच्चकोटि के बुद्धिसम्पन्न और सहनशील होते हैं। सारांश यह है कि डॉ. सोगाणी ने हमें जैनधर्म के आचार-सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रामाणिक रीति से प्रदर्शित करते हुए उनका सर्वाङ्पूर्ण अध्ययन प्रदान किया है। डॉ. सोगाणी की प्रस्तुत कृति मूल रूप से वही शोधप्रबन्ध है जो राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएच. डी की उपाधि के लिए स्वीकृत की गयी थी। यह उनका अत्यधिक स्नेह था कि उन्होंने जीवराज जैन ग्रंथमाला में प्रकाशन के लिए उसको हमारी व्यवस्था में सौंपा। सामान्य सम्पादक़ होने के नाते हम ट्रस्ट कमेटी के सदस्यों और प्रबन्ध समिति को ऐसे प्रकाशनों के वास्ते वित्त प्रबन्ध के लिए मन से धन्यवाद अर्पित करते हैं। इस बात की आशा की जाती है कि इस प्रकार 'जैन आचारशास्त्रीय सिद्धान्तों' का सर्वाङ्पूर्ण प्रतिपादन भारतीय धार्मिक चिंतन के विद्यार्थियों के लिए जैनधर्म को समीचीन रूप से समझने के योग्य बना देगा। Jain Education International (XXVII) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy