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से चढ़ता हुआ उदात्त लक्ष्य की ओर पहुँचता है। यह लोकातीत जीवन है और अतिमानसिक अवस्था है। यह आत्मा की विजय है, रहस्यवाद का फूल है। अब आत्मा ‘अरिहंत' है और तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में ठहरती है।
चौदहवें गुणस्थान से तुरन्त वह विदेहमुक्ति प्राप्त कर लेता है, आत्मा की यह अवस्था गुणस्थानों से परे है। आत्मा की यह अवस्था रहस्यात्मक यात्रा की समाप्ति है।
वैदिक, जैन और बौद्धों का चिन्तन उल्लेखनीय रूप से एक दूसरे के साथ मनोवैज्ञानिक, नैतिक और धार्मिक स्तर पर समान है। जैनधर्म के अनुसार मूल सद्गुण हैं- (1) आध्यात्मिक रूपान्तरण, (2) स्वाध्याय, (3) अहिंसा, (4) सत्य, (5) अस्तेय, (6) ब्रह्मचर्य, (7) अपरिग्रह, (8) ध्यान और (9) भक्ति। जैन आचार व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रिय प्रगति लाने में समर्थ कहा जा सकता है।
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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