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________________ तृतीय, राज्य के द्वारा दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना अचौर्य है। उपनिवेशवाद चोरी है और दूसरे राज्यों पर प्रभुत्व जमाना डकैती है। अत: इसकी निन्दा की जानी चाहिए। चतुर्थ, ब्रह्मचर्य यह बतलाता है कि राज्य को अपनी शक्ति सैन्य व्यवस्था में, अणु शस्त्र के निर्माण में बर्बाद नहीं करना चाहिए। राज्य का धन और शक्ति मानव-कल्याण में लगायी जानी चाहिए। ___पाँचवाँ, अपरिग्रह के सद्गुण से अभिप्राय है कि राज्य को दूसरे राज्यों के धन के पीछे नहीं दौड़ना चाहिए। अतिरिक्त उत्पादन दूसरे राज्यों के लिए काम में लिये जाने चाहिए। राज्य को साम्राज्यवादी प्रवृत्ति नहीं अपनाना चाहिए। अपरिग्रह का सद्गुण पूंजीवाद और साम्यवाद के मध्य स्थित माना जा सकता है। सद्गुणों का उपर्युक्त वर्णन जिसका संबंध राज्य से है उसके आधार पर हमें यह स्वीकार करना होगा कि राज्य मानव के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। व्यक्ति अपना भाग राज्य को प्रदान करता है जिससे व्यक्ति का भौतिक और आध्यात्मिक विकास हो सके। जिस प्रकार भौतिक पिछड़ापन व्यक्ति के विकास को रोकता है उसी प्रकार राज्य भी भौतिक साधनों के बिना अशक्त हो जाता है। किन्तु भौतिकवाद रूपी घोड़ों की लगाम अध्यात्मवाद के हाथों में होनी चाहिए। उपर्युक्त सद्गुण राज्य में सन्तुलित दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त हैं। अहिंसा और अपरिग्रह के सद्गुण सार्वलौकिक शांति स्थापित करने में समर्थ है। अहिंसा राज्य में उस समय तक विकसित नहीं की जा सकती जब तक लोभ कषाय का उन्मूलन न कर दिया जाए। हिंसा का मूल कारण भौतिक वस्तुएँ हैं। अपरिग्रह के सद्गुण के महत्त्व Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (83) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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