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विभिन्न आयामों को उजागर करने वाली इस चिरप्रतीक्षित पुस्तक का प्राक्कथन लिखकर जो गरिमा प्रदान की है उसके लिए हम उनके आभारी हैं। जैनविद्या संस्थान - अपभ्रंश साहित्य अकादमी में कार्यरत श्रीमती शकुन्तला जैन ने हिन्दी अनुवाद करके हिन्दी-जगत के स्वाध्यायियों और जैन आचार के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक उपलब्ध करवायी, इसके लिए वे धन्यवाद की पात्र हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के दस अध्यायों में से चार अध्याय खण्ड-1 के रूप में तथा पाँचवाँ और छठा अध्याय खण्ड-2 के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। अब सातवाँ, आठवाँ, नवाँ तथा दसवाँ अध्याय खण्ड-3 में प्रकाशित किये जा रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन में संस्थान के सहयोगी कार्यकर्त्ता एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर धन्यवादार्ह हैं।
प्रकाशचन्द्र जैन मंत्री
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Jain Education International
नगेन्द्रकुमार जैन
अध्यक्ष
15.03.2011
प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
(XI)
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