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है। जिस प्रकार कुन्दकुन्द ने आत्मा के लोकातीत और सांसारिक स्वरूप की निश्चय और व्यवहार से स्पष्ट व्याख्या की है उसी प्रकार उन्होंने आत्मा के तीन प्रकार बताये हैं जिसके द्वारा आत्मा और अनात्मा में भेद संभव हो सकेगा और रहस्यात्मक अनुभूति के द्वार खुल ही नहीं सकेंगे बल्कि उसके साथ तादात्म्य स्थापित किया जा सकेगा। तीन प्रकार की आत्मा का निरूपण (क) बहिरात्मा - बहिरात्मा के अर्थ को चार्वाक दर्शन साररूप में प्रस्तुत करता है। बहिरात्मा का लक्षण है- प्रथम, वह अपने आपका भौतिक शरीर से, संबंधों से और विभिन्न वस्तुओं से तादात्म्य स्थापित कर लेता है।1 . . जिसके परिणामस्वरूप वह शरीर के नष्ट होने पर अपने आपको नष्ट मानता है। द्वितीय, इन्द्रियों के क्षणभंगुर सुखों में वह अपने आपको व्यस्त रखता है,13 संसार की इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति से अपने आपको उल्लसित अनुभव करता है और जब वे नष्ट हो जाती हैं तो निरुत्साहित हो जाता है। तृतीय, वह तपों के द्वारा भौतिक सुखों को प्राप्त करने का इच्छुक होता है और मृत्यु के विचार से ही भयभीत हो जाता है।
11. मोक्षपाहुड, 8
समाधिशतक, 7, 13, 69
कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 193 12. ज्ञानार्णव, 32/18 13. समाधिशतक, 7, 55,
परमात्मप्रकाश, 1/84 14. समाधिशतक, 76
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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