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33), (iv) प्रतिक्रमण (33-34), (v) प्रत्याख्यान (34), (vi) कायोत्सर्ग (34-35), नग्नता (35), अन्य मूलगुण (3536), परीषह-उनकी गणना और व्याख्या (36-39), परीषह और तप में भेद (39-40), तप का स्वरूप और प्रकार (40-41), बाह्य तप (41-45), अंतरंग तप (4546), ध्यान का सामान्य स्वरूप और उसके प्रकार (4648), आर्त-ध्यान (48-50), रौद्र-ध्यान (50-51), प्रशस्त ध्यान की पूर्व आवश्यकताएँ (51-52), धर्म-ध्यान (52-54), शुक्ल-ध्यान (54-56), मुनि के आध्यात्मिक मरण के प्रकार (56-57), (i) भक्तप्रतिज्ञा-मरण (57-58), (ii) इंगिनी-मरण (58-59), (iii) प्रायोपगमन-मरण (59)।
जैन आचार का रहस्यात्मक महत्त्व 60-112 पूर्व अध्याय का संक्षिप्त विवरण (60), तत्त्वमीमांसा, आचार और रहस्यवाद (60-61), रहस्यवाद का स्वरूप (61-64), तीन प्रकार की आत्मा का निरूपण (क) बहिरात्मा (64), (ख) अन्तरात्मा (65), तीन प्रकार की अन्तरात्मा (65-66), (ग) परमात्मा (66), रहस्यवादी मार्ग (67), रहस्यवादी और तत्त्वमीमांसक (67-70), (1) जाग्रति से पूर्व आत्मा का अंधकारकाल या मिथ्यात्व गुणस्थान (70-72), मिथ्यात्व के प्रकार (72-73), नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूपान्तरण (74-76), (2) सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति या आत्मजाग्रति या अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान (76-77), सर्वोच्च गुरु के रूप में अरिहंत (77-78), अरिहंत की दोहरी भूमिका
(VII)
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