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________________ लेते हैं अन्यथा वे उस दिन बिना भोजन ग्रहण किये रहते हैं।162 (4) रसपरित्याग- भोजन की छह वस्तुओं जैसे- दूध, दही, घी, तेल, गुड़ और नमक में से एक का या अधिक का त्याग करना रसपरित्याग है और स्वादों जैसे खट्टा (अम्ल), मीठा (मधुर), कड़वा (कटु), कसैला (कषाय), और तीखा (तिक्त) में से एक या अधिक का त्याग करना भी रसपरित्याग है।163 यह दोनों प्रकार का त्याग इन्द्रियों के संयम के लिए, निद्रा को जीतने के लिए और अबाधित रूप से स्वाध्याय करने के लिए किया जाता है।164 (5) विविक्तशय्यासन- ऐसे एकान्त स्थान का चयन जो अनैतिक लोगों के आने-जाने से रहित हो और जो ध्यान, स्वाध्याय और ब्रह्मचर्य के लिए उपयुक्त हो और जो राग-द्वेष का कारण न बन सके।165 (6) कायक्लेश- कठोर आसनों द्वारा 162. सर्वार्थसिद्धि, 9/19 163. मूलाचार, 352 उत्तराध्ययन, 30/26 भगवती आराधना, 215 षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 57 164. सर्वार्थसिद्धि, 9/19 165. सर्वार्थसिद्धि, 9/19 ____ कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 445, 447 आचारसार, 6/15, 16 मूलाचार, 357 भगवती आराधना, 228 षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 58 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (43) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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