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________________ प्रति औपचारिक अनासक्ति। 33 कायोत्सर्ग के समय शरीर के अंगों में हलन-चलन नहीं होनी चाहिए।134 जो मुनि मोक्ष का इच्छुक है, जिसने निद्रा को जीत लिया है, जो आगम का ज्ञाता है, जिसके विचार पवित्र हैं, जिसमें शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति है वह कायोत्सर्ग के योग्य होता है।135 यह कायोत्सर्ग आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए हितकर है और कर्मों का विनाशक है।136 नग्नता दिगम्बर मुनि पूर्णतया नग्न होता है।137 वह नये जन्मे हुए बालक की तरह होता है। 38 नग्नता के पालन से मुनि में असाधारण गुण उत्पन्न हो जाते हैं, उदाहरणार्थ अपरिग्रह का भाव, निश्चिन्तता, निर्भयता और परीषहों को जीतने की शक्ति। इसके अतिरिक्त नग्न मुनि दूसरों में विश्वास उत्पन्न करते हैं, इन्द्रियविषयों के लिए अनादर का भाव दर्शाते हैं और स्वतन्त्रता के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। 40 अन्य मूलगुण - अस्नान, जमीन पर या शिला पट्टी पर या लकड़ी के तख्ते पर 133. मूलाचार, 28 134. मूलाचार, 650 135. मूलाचार, 651 136. मूलाचार, 652 137: मूलाचार, 30 138. सूत्रपाहुड, 18 बोधपाहुड, 51 139. भगवती आराधना, 83 विजयोदया की टीका सहित 140. भगवती आराधना, 84 विजयोदया की टीका सहित Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त - (35) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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