________________
आसक्ति आदि से मुड़ना मन का नियंत्रण है, असत्य से मुँह मोड़ना या मौन रखना वचन पर नियंत्रण है। शरीर के प्रति अनासक्ति तथा हिंसा से दूर रहना शरीर का नियंत्रण है। व्यवहारनय के अनुसार अशुभ भावों को त्यागना मनोगुप्ति है, झूठ बोलने को त्यागना वचनगुप्ति है और बंधन, छेदन, मारण आदि शारीरिक क्रियाओं से दूर रहना कायगुप्ति है।"
अशुभ प्रवृत्तियों को त्यागने के लिए ध्यान और स्वाध्याय प्रस्तावित किये गये हैं। यहाँ यह कहा जा सकता है कि गुप्ति निषेध पर जोर देती है जब कि समिति सकारात्मक भाव को प्रोत्साहित करती है। पूर्ववर्ती पापपूर्ण क्रियाओं का निषेध करती है जब कि परवर्ती पुण्यरूप क्रियाओं का पालन करना स्वीकार करती है। प्राणियों के सभी प्रकार के दुःखों को टालना समिति का उद्देश्य है जब कि मुनि गमन कर रहा हो (ईर्यासमिति), बोल रहा हो (भाषासमिति), भोजन कर रहा हो (एषणासमिति), वस्तुओं को उठा और रख रहा हो (आदाननिक्षेपणसमिति) तथा शौचक्रिया कर रहा हो (उत्सर्ग या प्रतिष्ठापनासमिति)।80 ये समितियाँ मुनि को पापों से दूर रखती हैं जैसे पानी में कमल का पत्ता
76. नियमसार, 69, 70 पद्मप्रभमलधारी देव की टीका सहित __ मूलाचार, 332, 333
भगवती आराधना, 1187, 1188 77. नियमसार, 66, 67, 68 78. मूलाचार, 335
भगवती आराधना, 1190 79. उत्तराध्ययन, 24/26 80. सर्वार्थसिद्धि, 9/2
चारित्रपाहुड, 37
(22)
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org