________________
होना तीव्र कषाय का द्योतक है जो कि मुनि जीवन के लिए असंगत है। असत्य और पीड़ादायक वचन जो राग, द्वेष, हास्य, भय, क्रोध और लालच के दबाव में बोले जा सकते हैं उनको सत्य महाव्रती त्याग देता है और साथ में आगम के अर्थ का अनुचित व्याख्यान भी त्याग दिया जाता है।” पाँच प्रकार की भावनाएँ जो सत्य महाव्रत को सशक्त करती हैं, वे हैं- वचन में विवेक रखना, क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक से अपने आपको रोकना।58 ___(iii) अस्तेय महाव्रत- अस्तेय महाव्रत में सभी प्रकार की चोरी का त्याग कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में सभी परद्रव्य जो गाँव, शहर या जंगल में पड़े होते हैं उनका त्याग करना अस्तेय महाव्रत के अन्तर्गत समाविष्ट है। इस महाव्रत में सम्मिलित हैं- अपने से बड़ों से पूछकर पुस्तकादि लेना, स्वामी से आवश्यक वस्तुओं की अनुमति प्राप्त करना, ग्रहण की हुई वस्तु के प्रति अनासक्त होना, निर्दोष वस्तुओं को प्राप्त करना, साधर्मियों की वस्तुओं को प्रस्तावित नियमानुसार संभालना।
57. मूलाचार, 6, 290
आचारांग, पृष्ठ 204 58. तत्त्वार्थसूत्र, 7/5
अनगार धर्मामृत, 4/45 आचारांग, पृष्ठ 204, 205 चारित्रपाहुड, 33
भगवती आराधना, 1207 59. मूलाचार, 7, 291
आचारांग, पृष्ठ 205
भगवती आराधना, 951 60. मूलाचार, 339
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त ।
(17)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org