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हैं। वे अनिवार्य रूप से गृहस्थ को मुनि-जीवन की ओर ले जाती है। परिणामस्वरूप, संसार में संघर्षरत मनुष्य नये जीवन में प्रवेश करता है। अगले पृष्ठों में हम लोकातीत जीवन के विकास के लिए प्रेरकों और उस जीवन से संबंधित आध्यात्मिक और नैतिक आचरण का वर्णन करेंगे, जिनका निरन्तर पालन आत्मानुभव के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकेगा। आध्यात्मिक जीवन के लिए प्रेरक के रूप में अनुप्रेक्षाएँ और उनका महत्त्व
मुनियों के आध्यात्मिक और नैतिक आचरण का वर्णन प्रारंभ करने से पहले हम आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए प्रेरकों (अनुप्रेक्षाओं) के स्वरूप और उनके महत्त्व पर विचार करेंगे। ये समान रूप से गृहस्थ और साधु को तात्त्विक, आध्यात्मिक और नैतिक अज्ञान को नष्ट करने के लिए और उन सब बाधाओं को जीतने के लिए तैयार करते हैं जो नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति को रोकती हैं। यदि वे (प्रेरक) गृहस्थ को पूर्ण त्यागमय जीवन में झाँकने की शक्ति प्रदान करते हैं, तो वे साधुओं के लिए पथप्रदर्शक होते हैं। वे प्रेरक हैं।-(1) सतत परिवर्तनशीलता या वस्तुओं की क्षणभंगुरता का प्रेरक (अनित्यअनुप्रेक्षा), (2) मृत्यु की अनिवार्यता का प्रेरक (अशरण-अनुप्रेक्षा), (3) पुनर्जन्म का प्रेरक (संसार-अनुप्रेक्षा), (4) एकाकीपन का प्रेरक (एकत्व-अनुप्रेक्षा), (5) आत्मा और अनात्मा के बीच तात्त्विक भेद का प्रेरक (अन्यत्व-अनुप्रेक्षा), (6) शरीर की अशुचिता का प्रेरक (अशुचि-अनुप्रेक्षा), (7) विश्व की व्यवस्था का प्रेरक (लोकअनुप्रेक्षा), (8) सम्यक्मार्ग को कठिनता से प्राप्त करने का प्रेरक
1. तत्त्वार्थसूत्र, 9/7
Ethical Doctrines in Jainism
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