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________________ लेता है।6 (2) यदि 'सम्यक्-मिथ्यात्व' खंड का उदय होता है तो आत्मा तीसरे (मिश्र) गुणस्थान में गिर जाता है या चौथे (अविरतसम्यग्दृष्टि) गुणस्थान में उठ जाता है।" यदि अनंतानुबंधी कषाय का उदय होता है तो आत्मा दूसरे (सासादन) गुणस्थान में गिर जाता है। यहाँ से वह निश्चित रूप से मिथ्यात्व गुणस्थान में गिर जाता है जो पूर्ण अंधकार का प्रथम गुणस्थान है। (3) जब 'सम्यक्-प्रकृति' खण्ड का उदय होता है तो आत्मा चौथे (अविरतसम्यग्दृष्टि) गुणस्थान में ठहर जाता है, किन्तु इसमें उपशम सम्यक्त्व की शुद्धता खो जाती है फिर भी यह आत्मा को आध्यात्मिक विकास में ले जाने में सक्षम है। . यह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहलाता है 80 इसमें भी पतन के कीटाणु . उपस्थित रहते हैं। जब आत्मा केवली के सम्पर्क में आता है तो दर्शनमोहनीय कर्म का पूर्णतया क्षय हो जाता है और तब आत्मा निम्न गुणस्थानों में नहीं गिरता है। यह क्षायिक सम्यक्त्व कहलाता है। 4. उसकी शुद्धता उपशम सम्यक्त्व जैसी होती है किन्तु क्षायिक सम्यक्त्व 76. लब्धिसार, 108 77. लब्धिसार, 107 78. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 20 79. लब्धिसार, 105 80. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 309 गोम्मटसार जीवकाण्ड, 25, 648 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 308 गोम्मटसार जीवकाण्ड, 647 82. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 308 गोम्मटसार जीवकाण्ड, 648 83. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 646 84. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 645 (82) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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