SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुगम हो सकता है किन्तु वे नियमानुसार इसको उत्पन्न नहीं कर सकते। बौद्धिक और नैतिक उपलब्धियाँ निःसन्देह सामाजिक दृष्टिकोण से उपयोगी हैं किन्तु आवश्यकरूप से आध्यात्मिक जाग्रति उत्पन्न करने में असमर्थ रहेंगी। इस प्रकार आध्यात्मिक रूपान्तरण का नैतिक रूपान्तरण और बौद्धिक उपलब्धियों से भेद किया जाना चाहिए। बाह्य शुभ चारित्र और प्रभावशाली बौद्धिकता- ये आध्यात्मिक परिवर्तन की सूचक नहीं हो सकती हैं। इसके विपरीत एक मनुष्य नैतिक मार्ग पर गमन करते हुए और परिष्कृत दृष्टिकोण न रखते हुए भी आध्यात्मिक रूपान्तरण का स्वामी हो सकता है। किन्तु इस कारण से नैतिक आचरण और परिष्कृत ज्ञान की निन्दा नहीं की जानी चाहिए, यद्यपि आध्यात्मिक रूपान्तरण को उनके साथ गड्डमड्ड नहीं करना चाहिए। हम जैसे सामान्य लोगों के द्वारा अकेले नैतिक जीवन पर या ज्ञान के साथ नैतिक जीवन पर जहाँ कहीं भी वह दिखायी दे उस पर श्रद्धा की जानी चाहिए, किन्तु नैतिक रूपान्तरण और आध्यात्मिक रूपान्तरण को मिलाना नहीं चाहिए। प्रो. दाते के अनुसार “नैतिक जीवन द्विगुणित रूप से मूल्यवान है- समाज के उत्थान के लिए और आध्यात्मिक जीवन के आधार के रूप में।"54 रहस्यवाद का फूल केवल नैतिकता रूपी पानी से नहीं खिलता है किन्तु इसके साथ ही आध्यात्मिक खाद की भी आवश्यकता होती है। नैतिकता आध्यात्मिकता के साथ रहस्यात्मक अनुभव को लोकातीत दिव्य ऊँचाइयों पर ले जा सकती है। अब हम आत्मा और अनात्मा में भेद करके आत्मजाग्रति की चर्चा करेंगे जो हमारे चौथे गुणस्थान का 54. Yoga of the Saints, P.76 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (75) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy