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परिवर्तनशील मात्राएँ होती हैं। जैनदर्शन के द्वारा प्रतिपादित पुद्गल की धारणा इतनी व्यापक है कि वह वैशेषिकों द्वारा स्वीकृत नौ द्रव्यों (पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन) में से पाँच द्रव्यों-पृथ्वी, जल, वायु, तेज (अग्नि) और द्रव्य-मन को अपने अन्तर्गत सम्मिलित करता है। पाँच द्रव्य आसानी से पुद्गल में समाविष्ट हो जाते हैं, क्योंकि ये पुद्गल परमाणुओं के भिन्न-भिन्न संयोगों से उत्पन्न होते हैं। परमाणुओं के चार गुण, संख्यात, असंख्यात और अनन्त वर्गों को स्वीकार करते हैं, लेकिन मुख्य प्रकार बीस माने जाते हैं। आठ प्रकार का स्पर्श- कोमल, कठोर, भारी, हल्का, ठंडा, गरम, स्निग्ध और रूक्ष, पाँच प्रकार का रस- कड़वा, कसैला, खट्टा, मीठा और चरपरा, दो प्रकार की गंध- सुगंध और दुर्गन्ध पाँच प्रकार का वर्ण-नीला, पीला, सफेद, काला और लाल। पुद्गल के कार्य हैं- पाँच प्रकार के शरीर, वचन, मन, कर्म परमाणु, श्वासोच्छ्वास (श्वास लेना और श्वास छोड़ना), सुख और दुःख, जीवन और मरण तथा पाँच प्रकार की इन्द्रियाँ।
49. तत्त्वार्थसूत्र, 5/23 ___ सर्वार्थसिद्धि, 5/5 50. सर्वार्थसिद्धि, 5/3 51. सर्वार्थसिद्धि, 5/23 -52. सर्वार्थसिद्धि, 5/23 53. सर्वार्थसिद्धि, 5/23 54. सर्वार्थसिद्धि, 5/3 55. तत्त्वार्थसूत्र, 2/36 ____ शरीर पाँच प्रकार के हैं- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्माण। 56. पञ्चास्तिकाय, 82 . सर्वार्थसिद्धि, 5/19, 20
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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