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और पन्द्रह दिन समय की सीमा मानी जा सकती है । 116 लेकिन हेमचन्द्र के अनुसार एक दिन या एक रात की समय- सीमा भी हो सकती है । 117 यह याद रखना चाहिए कि स्थान की निश्चित सीमा से परे निश्चित समय के लिए स्थूल और सूक्ष्म पाप इस हद तक पूर्णतया त्याग दिये जाते हैं कि देशव्रत का पालन करनेवाला देशव्रत के सीमित समय के लिए महाव्रती कहा जा सकता है। 18 देशव्रत के उपर्युक्त विचार के अतिरिक्त कार्तिकेय समझाते हैं कि दिव्रत के द्वारा जो व्यापक क्षेत्र प्रस्तावित किया गया है उसमें इन्द्रिय-विषयों को भी सीमित किया जाना चाहिए। 119 संभवतया यह बात भोगोपभोगपरिमाणव्रत जिसे उनके द्वारा गुणव्रत माना गया है उसको और भी सीमित करने की ओर अग्रसर होना है। दूसरे शब्दों में, देशव्रत कार्तिकेय के अनुसार दिव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत के क्षेत्र को सीमित करता है जबकि समन्तभद्र और श्रावकप्रज्ञप्ति केवल दिग्व्रत की सीमा को सीमित करने का समर्थन करते हैं। यह देशव्रत की व्याख्या उन लोगों के अनुरूप की गयी है जो उसको शिक्षाव्रत स्वीकार करते हैं।
अब हम देशव्रत के स्वरूप का उन आचार्यों के अनुसार वर्णन करेंगे जो देशव्रत को गुणव्रत के रूप में स्वीकार करते हैं। उमास्वामी 20 और वसुनन्दी के अनुसार देशव्रत एक गुणव्रत है । तत्त्वार्थसूत्रभाष्य 21
116. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 34
कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 368 117. योगशास्त्र, 3/84
118. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 95 119. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 367
120. सर्वार्थसिद्धि, 7/21
121. तत्त्वार्थसूत्र भाष्य, 7 / 21
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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