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प्रकाशकीय
जैनधर्म एवं दर्शन के अध्येताओं के लिए डॉ. कमलचन्द सोगाणी द्वारा लिखित पुस्तक “Ethical Doctrines in Jainism' के हिन्दी-अनुवाद 'जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त' का प्रकाशन करते हुए अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है।
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा सन् 1982 में जैनविद्या संस्थान' की स्थापना की गयी। यह संस्थान सन् 1947 में स्थापित 'साहित्य शोध संस्थान' का विकसित रूप है। उस समय इसकी स्थापना में स्व. पण्डित चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ, जयपुर की प्रेरणा व तत्कालीन मंत्री श्री रामचन्द्रजी खिन्दूका का प्रयास रहा है। . जैनविद्या संस्थान जैनधर्म-दर्शन एवं संस्कृति की बहुआयामी दृष्टि को सामान्यजन एवं विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए सतत प्रयत्नशील है। इस उद्देश्य की पूर्ति के उपक्रम में संस्थान द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। उदाहरणार्थ- जैन पुराणकोश', 'आदिपुराण' (सचित्र), भक्तामर' (सचित्र), ‘परम पुरुषार्थ अहिंसा', 'प्रवचन प्रकाश', 'सोलहकारण भावना-विवेक', 'अर्हत प्रवचन', 'जैन भजन सौरभ', 'द्यानत भजन सौरभ', 'दौलत भजन
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