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________________ प्रकाशकीय 'प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण (भाग - 1 ) ' अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा 'प्राकृत' में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया। भाषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है। उसका जीवन से घनिष्ठ सम्बन्धं होता है । जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है। प्राकृत भाषा भारतीय आर्य परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है। वैदिक काल से ही यह लोकभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। इसका प्रकाशित, अप्रकाशित विपुल साहित्य इसकी गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है। भारतीय लोक-जीवन के बहुआयामी पक्ष दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएं प्राकृत साहित्य में निहित है। तीर्थंकर महावीर के युग में और उसके बाद विभिन्न प्राकृतों का विकास हुआ, . वे हैंमहाराष्ट्री प्राकृत (प्राकृत), शौरसेनी प्राकृत, अर्धमागधी प्राकृत, मागधी प्राकृत और पैशाची प्राकृत। इनमें से तीन प्रकार की प्राकृतों का नाम साहित्य के क्षेत्र में गौरव के साथ लिया जाता हैं, वे हैं- महाराष्ट्री प्राकृत, शौरसेनी प्राकृत तथा अर्धमागधी प्राकृत। महावीर की दार्शनिक आध्यात्मिक परम्परा शौरसेनी व अर्धमागधी प्राकृत में रचित है और काव्यों की भाषा सामान्यतः महाराष्ट्री प्राकृत कही गई है। यह प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश भाषा के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। Jain Education International (v) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004204
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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