SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकारान्त (पु.) तृतीया एकवचन 3/1 4. (i) प्राकृत भाषा में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति एकवचन में अन्त्य 'अ' का 'ए' करके उसमें 'ण' और 'णं' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। . जैसे देव (पु.) (देवे+ण, णं) = देवेण, देवेणं (तृतीया एकवचन) षष्ठी बहवचन 6/2 (ii) प्राकृत भाषा में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति बहुवचन . में अन्त्य 'अ' का 'आ' करके उसमें 'ण' और 'णं' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेदेव (पु.) (देवा+ण, ण) = देवाण, देवाणं (षष्ठी बहुवचन) ----------------------- 5. अकारान्त (पु.) तृतीया बहुवचन 3/2 प्राकृत भाषा में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति बहुवचन में अन्त्य 'अ' का 'ए' करके उसमें 'हि', 'हिँ' और 'हिं' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेदेव (पु.) (देवे+हि,हिँ,हिं) = देवेहि, देवहिँ, देवेहिं (तृतीया बहुवचन) __ अकारान्त (पु.) __ पंचमी एकवचन 5/1 प्राकृत भाषा में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के पंचमी विभक्ति एकवचन में अन्त्य 'अ' का 'आ' करके उसमें 'तो', 'दो-ओ', 'द-उ', 'हि', 'हिन्तो' और 'शून्य' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेदेव (पु.) (देवा+त्तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, 0) = देवात्तो-देवत्तो, देवाओ, देवाउ, देवाहि, देवाहिन्तो, देवा (पंचमी एकवचन) नोट- दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाता है। --------------------- प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004204
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy