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की कत्लेआम के शिकार हुए और बीते ५०० वर्षों में उनकी जनसंख्या घट कर अब सिर्फ करीब ६५,००० रह गयी है । आज अमरिका की सारी प्रजा माईग्रेटेड' लोगों की प्रजा है, जो युरोप के अलग अलग राष्ट्रों से जा कर वहाँ बस गये हैं। २०० वर्ष पूर्व सेन कि उपिनवेष के रुप में अमरिका 'आज़ाद' जरुर हुआ, किंतु कहाँ हैं उसके मूल निवासी - वहाँ के रेड इंडियन्स ?
भारत की प्रजा की अपनी युगों पुरानी संस्कृति थी । सुदृढ जड़ोंवाला सामाजिक, आर्थिक - राजनैतिक ढाँचा था, जिस पर धर्म का नियंत्रण व संरक्षण था ।अतः इस प्रजा के साथ एसा सलूक संभव नहीं था जैसा अमरिका की मूल प्रजा के साथ हुआ। अतः इस प्रजा के तथा उसके धर्म के विनाश के लिए अलग नीति की आवश्यकता थी और अलग योजना की।
'साम - दाम - दंड-भेद' की नीति की भारत के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा हुई। साम', समझाने पर इस देश की प्रजा कभी नहीं मानती, क्योंकि सर्वोत्कृष्ट सनातन, वैदिक व अन्य धर्मों के आश्रय में सर्वोत्कृष्ट जीवन का स्वाद यहाँ की प्रजा युगों से जानती थी। 'दाम' का तो कोई अर्थ ही न था - यह देश सोने की चिड़िया था व समय समय पर यहाँ की समृद्धि की लालच में लुटेरे यहां आते थे और उनकी मोटी लूट के बावजूद यहाँ की आर्थिक समृद्धि पर कोई असर नहीं होता था। दंड' भी यहाँ बेकार था । अतुल शौर्य के धनी क्षत्रियों के अलावा यहाँ की प्रजा मानसिक गौरव व शारीरिक बल-सौष्ठव की ऐसी धनी थी, देशाभिमान की भावना से इतनी भरी थी कि प्रजा - वत्सल - राजाओं की छत्रछाया में सारा देश सुरक्षित था । १४९२ के पहले कितने ही मुगल, मंगोल और अन्य आक्रमणकारी यहाँ आये तो भी किसी के वश में यह देश नहीं आया।
अब बचा सिर्फ 'भेद' ! और इस शस्त्र को आजमाने का कार्य सौंपा गया भेद नीति में निपुण ब्रिटन को । इस तरह चाहे भारत की खोज की पोटुंगल ने और पहली कोठी बनाई गयी गोवा में, किंतु भारत में मुख्य खेल खेलने के लिये चुना गया ब्रिटन को।
इतने विशाल, सुसंस्कृत देश का विनाश रेड इंडियन्स' के विनाश की तरह सरल न था। इस कार्य को योजनबद्ध तरीके से करने के लिए विशाल योजना बनाई गयी और योजना के प्रत्येक चरण के लिए करीब १००-१०० वर्षों का कार्यकाल तय किया गया । बारीक से बारीक बात तय की गयी।
किसी भी आक्रमण में प्रथम चरण होता है दुश्मन की छावनी में अपने जासूस भेजना, दुश्मन के सारे प्रदेश की जानकारी लेना, उसकी शक्तियों तथा दुर्बलता के छिद्रों को जानना तथा हमले के लिए सर्वथा उपयुक्त समय तयं करना । तदनुसार पूरी सोलहवीं शताब्दी में ब्रिटन के कई 'जासूस' याविकों के भेष में भारत आये। वर्षों तक - दशकों तक, भारत में रहे - घूमे, भारत के कोने कोने में गये तथा भारत के अस्तित्व के हर पहलू के बारे में जानकारी लेकर उसका व्यवस्थित 'डोक्युमेंटेशन' किया। यहाँ की वर्ण व्यवस्था, व्यक्तिगत स्तर पर चारों आश्रम की व्यवस्था, परिवार व समाज व्यवस्था, राजकीय व अर्थ व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, धर्म व्यवस्था, भौगोलिक स्थिति, ऋतुएँ, खेती की प्रणाली, व्यवसाय व उद्योग, प्राकृतिक संपदायें, रीति रिवाज, मानव व अन्य जीव-सृष्टि का आपसी संबंध, पशुसृष्टि ईत्यादि, ईत्यादि - सभी कुछ उनकी पैनी नजर के नीचे आया और उन प्रवासियों की डायरी में नोट होता चला गया । उन सभी मुद्दों पर प्रशंसा के अलावा कुछ नहीं था और आज जो हमें इतिहास पढ़ाया जाता है उसमें इन डायरियों में की गई प्रशंसा को पढ़कर हम खुश होते हैं। वास्तव में 'Espionage' का इतना बढ़ा दौर इतिहास में और कोई नहीं है।
आक्रमण के प्रथम चरण - जासूसी के बाद, दूसरा चरण होता है शत्रु के दायरे में घुस कर हल्ला । किंतु भेद-नीति में चतुर अंग्रेज यह जानते थे कि आक्रमणकारी के रुप में यदि इस देश में घुसे तो बुरी मार पिटेगी ! अन्य (मुगल) आक्रमणकारी
और सिकंदर इस तरह पिट चुके थे । इसलिये उन्होंने भेष बनाया व्यापारी का ! बिन की पार्लियामेंट ने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' को 'चार्टर' दिया, अनुज्ञापत्र दिया कि जाओ भारत में व्यापार करो।
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