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________________ यह तो मात्र सामान्य ध्यान आकर्षित किया है। प्रत्येक अनुच्छेद का विश्लेषण करेक उपर की सभी बातें समझायी जा सकती है। हे देव! जिस संविधान ने करोड़ों वर्षों से हमारी प्रजा की रक्षा की वह संविधान के लागू होने पर निरस्त होता है। हमारे धर्म, हमारी संपत्तियाँ, संस्कृति, समाज व्यवस्था, समग्र जीवन व्यवहार और एक विशिष्ट प्रजा के रूप में जगत में भविष्य में हमारा उ स्तित्व - ये तमाम निरस्त होता है। हमारे ही इस देश में विश्व की दूसरी प्रजाओं का हमारे जितनी ही हक प्रस्थापित होका है और उनके आदर्शों, धर्म, संस्कृति, संपत्ति, न्याय, कानून, भाषा, सत्ता, बल, आदि को पूरा वेग प्राप्त होने का मार्ग खुलता है। ___और ये सब हो रहा है उदारता, सहिष्णुता, एकता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय, समानता, विश्वशांति के नाम पर! ये सभी सिद्धांत हमें भी अभीष्ट हैं, किन्तु छलावे के रूप में नहीं। हमारे पीछे करोड़ों अश्वेत प्रजाजनों का विश्वास समाहित है। जगत का सही अर्थ में भला होता हो तो चाहे हमारा सब कुछ चला जाये, जगत भले ही सुखी हो, परंतु ऐसी रचना में तो जगत का वास्तविक श्रेय नहीं है, जगत का अंततः सुख नहीं है। यह पुकार, हे देव! हम किसके आगे करें? धर्म गुरुओं के कानों तक यह पुकार नहीं पहुंच रहा है। पोप तो इस आंतरराष्ट्रीय पंडयंत्र में शामिल प्रतीत होते हैं। चीन अपने आंतरिक झगड़ों में फंसा है और बाहर से कर्ज के बोझ तले दबने की तैयारी में होगा। जापान आधुनिक विज्ञान का स्वाद चखते हुए उसी का भोग बन गया है। इस्लामी राज्य और तुर्किस्तान तो पहले से फंसे हुए हैं । भारत के मुसलमान भी पाकिस्तान की लालच से दो भागों में बँट चुके हैं। भारत की हिन्दु प्रजा की भी यही दशा है। को न वि शरणम्? गांधीजी गये, नेहरूजी इंग्लैंड के प्रधानमंत्री एटली साहब की दाक्षिण्यता और मिठास से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। सरदार साहब और बाबू राजेन्द्र प्रसादजी की शक्ति अन्य कार्यों के लिये सुयोग्य होगी किंतु इस काम की ओर उनका ध्यान जाये ऐसा लगता नहीं है। ___ मावलंकर दादा बिचारे लोकतंत्र की जाल में खुद बुन गये हैं और जब तक सच्चे लोकतंत्र की जानकारी उन्हें मिले तब तक तो सब खत्म हो जायेगा। लूट जाने के बाद नींद खुलने जैसा होगा। बेरिस्टर आंबेडकर और क.मा. मुंशी तो प्रखर वकील हैं, इसलिये उनसे तो आशा ही क्या की जाये? इस तरह से हे देव! जगत की समस्त अश्वेत प्रजायें चारों तरफ से शरणहीन बन चुकी हैं। किससे न्याय मांगा जाये? इस संविधान के पीछे कुंडली मारकर बैठे हुए २००-२५० वर्ष के अन्याय का निर्मूलन कैसे किया जाय? ___- पं. प्रभुदास बेचरदास पारेख Jain Education Interational (19) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004203
Book TitleMananiya Lekho ka Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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