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________________ प्रथम अध्ययन - श्रंमणोपासक आनंद - आनंदजी का अभिग्रह आनंद श्रावक ने व्रत ग्रहण के पश्चात् एक विशेष प्रकार का दृढ़ संकल्प लिया जो सम्यक्त्व की दृढ़ता एवं सुरक्षा के लिए उचित था। आनंद श्रावक के प्रतिज्ञा सूत्र में प्रयुक्त 'अण्णउत्थियाणि' शब्द का अर्थ है - अन्यतीर्थिक साधु। यद्यपि इसमें सामान्य गृहस्थ का भी समावेश हो सकता है, परन्तु सामान्यतया उनका सम्पर्क मिथ्यात्व का कारण नहीं बनता, उत्तरा० अ० १० गाथा १८ में भी 'कुतित्थी' शब्द से 'अन्यदर्शनी साधुओं का ही ग्रहण हुआ है। 'अण्णउत्थियदेवयाणि' का अर्थ है-अन्यतीर्थियों के देव। वे पुरुष जो अमुक धर्म के प्रवर्तक, संस्थापक अथवा आचार्य रूप हो। जैसे आनन्दजी के युग में - गोतमबुद्ध बौद्धधर्म के प्रवर्तक थे। मंखलिपुत्र गौशालक भी आजीवक मत के देव रूप थे। 'दिव्यावदानन' नामक बौद्ध ग्रन्थ में ऐसे छह व्यक्तियों का नामोल्लेख है - १. पूरण काश्यप २. मंखलिपुत्र गोशालक ३. संजय वेरट्ठीपुत्र ४. अजित देश कम्बल ५. कुकुद कात्यायन और ६. निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र। . ___तेन खलु समयेन राजगृहे नगरे षट पूर्णाद्याः शास्तरोऽसर्वज्ञाः सर्वज्ञमानिनः प्रतिवसंतिस्य। तद्यथा-पूरणः काश्यपो मश्करी गोशालिपुत्रः संजयी वेरट्ठीपुत्रो अजित केश कम्बलः कुकुदः कात्यायनो निर्ग्रन्थो ज्ञातपुत्रः।" - इस प्रकार के अन्यतीर्थिक देवों की वंदना-नमस्कार आदि नहीं करने का आनन्दजी ने अभिग्रह लिया था। ___ 'अण्णउत्थियाणि परिग्गहियाणि' - यहाँ पाठ-भेद है और विवादजनक है, 'चेइयाई' और 'अरिहंत चेइयाई दोनों पाठ प्रक्षिप्त है जिसका स्पष्टीकरण फुट नोट में किया जा चुका है। साथ ही टीकाकार का किया हुआ अर्थ तो अपने समय में पूर्णरूप से प्रसरी और जमी हुई मूर्तिपूजा से प्रभावित है। और 'चेइय' - चैत्य शब्द का अर्थ मात्र प्रतिमा ही नहीं होता। प्रसिद्ध जैनाचार्य पूज्य श्री १००८ श्री जयमलजी म. सा. ने 'चेइय' शब्द के एक सौ बारह अर्थों की खोज की। 'जयध्वज' पृ० ५७३ से ५७६ तक वे देखे जा सकते हैं। वहाँ अन्त में लिखा है 'इति अलंकरणे दीर्घ ब्रह्माण्डे सुरेश्वर वार्तिके प्रोक्तम् प्रतिमा चेइय शब्दे नाम ९० मो छ। चेइय ज्ञान नाम पाँचमो छ। चेइय शब्द यति साधु नाम सातुम छ। पछे यथायोग्य ठामे जे नाम हुवे तो जाणवो। सर्व चैत्य शब्द ना आंक ५७ अने चेइय शब्दे ५५ सब ११२ लिखितं।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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