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________________ श्री उपासकदशांग सूत्र समायरियव्वा, तंजहा - आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाए, रूवाणुवाए, बहिया पोग्गलपक्खेवे १० । कठिन शब्दार्थ - देसावगासिय- देश अवकाशिक - देश अर्थात् हिस्सा = खंड = सर्व का एक अंश । अवकाश अर्थात् छुट्टी । अणुव्रत एवं गुणव्रत रूप सर्व जो कि जीवन पर्यन्त के लिए होते हैं उनकी दैनिक मर्यादा रूप अंश को खुला रख कर शेष अधिकांश का आस्रव रोकना 'देशावकासिक' व्रत है, आणवणप्पओगे - आनयन प्रयोग, पेसवणप्पओगे प्रेष्य प्रयोग, सद्दाणुवाए - शब्दानुपात, रूवाणुवाए रूपानुपात, बहियापोग्गलपक्खेवे - बहिः पुद्गलप्रक्षेप । भावार्थ तत्पश्चात् श्रमणोपासक को देशावकासिक व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं। प्रयोग ३. शब्दानुपात ४. रूपानुपात और ५. बर्हिपुद्गल प्रक्षेप । - १. आनयन प्रयोग २. प्रेष्य विवेचन - देसावगासियं दिग्व्रतगृहीतस्य दिक्परिणामस्य प्रतिदिनं संक्षेपकरणलक्षणे सर्व व्रतसंक्षेपकरण लक्षणे वा ।' ( अभि० भाग ४, पृ० २६३२ ) अर्थ - छठे व्रत दिशा - परिमाण को प्रतिदिन संक्षिप्त करना तथा सभी व्रतों के परिमाण को संक्षिप्त करना 'देशावकाशिक' कहलाता है । देशावकासिक व्रत के पांच अतिचारों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है - ४८ - Jain Education International - १. आनयन प्रयोग - दिशा मर्यादा करने से वह स्वयं तो मर्यादित भूमि से बाहर नहीं जा सकता, परन्तु दूसरों को भेज कर कोई वस्तु मंगवाना 'आनयन प्रयोग' है। २. प्रेष्य प्रयोग मर्यादित क्षेत्र के बाहर के क्षेत्र के कार्यों को संपादित करने हेतु सेवक, पारिवारिक व्यक्ति आदि को भेजना । ३. शब्दानुपात - मर्यादित क्षेत्र से बाहर का कार्य सामने आ जाने पर, ध्यान में आ जाने पर छींक कर, खांसी लेकर या और कोई शब्द कर पडौसी आदि से संकेत द्वारा कार्य करवाना। ४. रूपानुपात - मर्यादित क्षेत्र से बाहर का काम करवाने के लिए मुंह से कुछ नहीं बोल कर हाथ, अंगुली आदि से संकेत करना । - - ५. बहि: पुद्गल प्रक्षेप - मर्यादित क्षेत्र से बाहर का काम करवाने के लिए कंकर आदि फेंककर अपनी उपस्थिति बताना अथवा कार्य का संकेत करना । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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