________________
प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रत-ग्रहण
२३
भावार्थ - चौथे व्रत में आनंदजी 'स्वदार संतोष परिमाण' करते हैं - 'मैं अपनी भार्या शिवानंदा के अतिरिक्त शेष सभी के साथ मैथुन विधि का मन, वचन और काया से प्रत्याख्यान करता हूँ।'
विवेचन - स्थूल अदत्तादान प्रत्याख्यान रूप तीसरा अणुव्रत ग्रहण करके आनंद श्रावक चौथा अणुव्रत धारण करते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि - 'हे भगवन्! मैं अपनी एक मात्र विवाहिता पत्नी शिवानंदा के अतिरिक्त बाकी सब मैथुन विधि का मन, वचन, काया से सेवन नहीं करूँगा।'
चौथे व्रत में करण का स्पष्टीकरण मूल पाठ में नहीं है इसका कारण यह है कि आनंद श्रावक ने शिवानंदा पत्नी के अलावा सम्पूर्ण कुशील का त्याग किया है। इस विषय में परम्परा से एक करण एक योग समझना चाहिये। क्योंकि गृहस्थ जीवन में पुत्र आदि के लग्न करने के लिए उसे आदेश या निर्देश करने पड़ सकते हैं। उत्तरदायित्व से मुक्त होने पर करण योग में वृद्धि की जा सकती है। देव देवी की अपेक्षा दो करण तीन योग से त्याग समझना चाहिये। ___ यहाँ मूल पाठ में कुछ प्रतियों में 'सिवनंदा' पाठ मिलता है किन्तु अभिधान राजेन्द्रकोष में आनंद श्रावक के वर्णन में सर्वत्र मूलपाठ में 'सिवाणंदा' पाठ है। शब्दकोष के क्रम में भी 'सिवाणंदा' शब्द और उसकी व्याख्या है। 'सिवनंदा' शब्द कोष में नहीं है इसीलिए यहाँ मूल पाठ में 'सिवानंदा' शब्द दिया है जो कि शुद्ध है।
.. ५-६ इच्छा परिमाणव्रत/दिशाव्रत तयाणंतरं च णं इच्छाविहिपरिमाणं करेमाणे हिरण्णसुवण्णविहिपरिमाणं करेइ, णण्णत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं णिहाणपउत्ताहिं, चउहिं वुट्टिपउत्ताहिं चउहिं पवित्थरपउत्ताहिं, अवसेसं सव्वं हिरण्णसुवण्णविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - इच्छाविहिपरिमाणं - इच्छा विधि परिमाण, हिरण्णसुवण्णविहिपरिमाणं - हिरण्य स्वर्णविधि परिमाण।
भावार्थ - तदनन्तर आनंद जी पांचवें इच्छाविधि-परिग्रह परिमाण व्रत में हिरण्य स्वर्ण विधि का परिमाण करते हैं - 'चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं भण्डार में, चार करोड़ व्यापार में, चार करोड़ की घर बिखरी। इसके अतिरिक्त शेष हिरण्य स्वर्ण विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org