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________________ दो शब्द आगमप्रेमी श्रुतश्रद्धालु पाठकों के पाणि-पद्यों में श्री उपासकदशांग सूत्र प्रस्तुत करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। जो देव-गुरु की सेवा-उपासना करे, उन्हें उपासक या 'श्रमणोपासक' कहा जाता है। जिनवाणी सुनने की तत्परता के कारण जिन्हें 'श्रावक' भी कहा जाता है। ऐसे दस आदर्श उपासकों का जीवन चरित्र इस ‘उपासकदशांग सूत्र' में गुंफित है। ___ मूलपाठ में अधिकांश टीकार्थ वाली प्रति का सहारा लिया गया है। कहीं-कहीं मुनि नथमलजी संपादित लाडनूं वाली प्रति तथा सुत्तागमे से भी सहायता ली गई है। जिन-जिन पुस्तक-ग्रन्थों का उपयोग हुआ, उनकी सूचि अलग दी गई है। उन लेखकों प्रकाशकों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। परम आदरणीय आगमवेत्ता श्रीमान् रतनलालजी सा. डोशी, सैलाना इस कार्य-संपूर्ति के आद्य से इति तक सम्प्रेरक रहे हैं। उन्हीं के आदेश से मैं इस कार्य में प्रवृत्त हुआ। मेरे लिए आगम अनुवाद का यह पहला अवसर था। अतः बिना उनके उन्मुक्त दिशा-दर्शन के यह कार्य संभव नहीं था। मैं उनके प्रति आभार-अभिव्यक्ति कर उऋण होना नहीं चाहता। वे अपने कुशल निर्देशन में मुझे घिस-घिस कर गोल बनाएं। सदा सर्वदा यही अपेक्षा रहती है। मुझे न तो संस्कृत व्याकरण का ज्ञान है, न प्राकृत भाषा का। अतः शब्दों की विभक्ति, वचन, क्रिया आदि के अनुसार अर्थ नहीं हो पाया होगा। कहीं गूढ़ शब्दों के भाव यथावत् समझ में नहीं आने से अपूर्ण-अर्थ भी संभव है। उन सब का परिमार्जन करना विद्वानों का अनुग्रह मानूँगा। ___ अनेक स्थलों पर अर्थ करने में अनेक प्रकार की मान्यताएँ थी और हैं। मैंने अपनी समझ से वही अर्थ मान्य किया है जो प्रसंगानुसार उचित लगा जैसे - १. 'आयाहिणं पयाहिणं' का अर्थ अमुक 'आदक्षिणा-प्रदक्षिणा' करते हैं। पर परिक्रमा का औचित्य ध्यान में नहीं आने से 'सिरसा अंजलिबद्ध आवर्तन' को ही अभिप्रेत माना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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