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________________ उपासक दशांग का संक्षेप में परिचय अर्थ - सभी श्रमणोपासकों के १. शरीर पोंछने का अंगोछा २. दातुन ३. फल ४. तेल अभ्यंगन ५. उबटन ६. स्नान ७. वस्त्र ८. चन्दनादि विलेपन ६. पुष्प १०. आभरण ११. धूप १२. पान १३. मिष्ठान्न १४. चावल १५. दाल १६. घृत १७. शाक १८. मधुरक (फल) १६. भोजन २०. पानी और २१. मुखवास । अवधिज्ञान का परिमाण - उड्डुं सोहम्मपुरे लोलूए, अहे उत्तरे हिमवंते । पंचसए तह तिदिसिं, ओहिण्णाणं दसगणस्स ॥ १० ॥ Jain Education International १७३ अर्थ - वे श्रमणोपासक ( महाशतक को छोड़ कर ) अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक में सौधर्मदेवलोक तक, अधोलोक में रत्नप्रभा पृथ्वी के लोलुयच्चुय नरकावास तक, उत्तर में हिमवंत वर्षधर पर्वत तक और पूर्व - पश्चिम और दक्षिण में पाँच सौ योजन लवण समुद्र में जान-देख सकते थे। विवेचन सूत्र के अ० में ८ महाशतक श्रमणोपासक को एक हजार योजन तक लवण समुद्र में देखना लिखा है। अन्य सभी को पांच सौ योजन है । यहाँ अन्तर मालूम देता है अथवा भेद होने के कारण महाशतक के अवधिज्ञान के विस्तार का गाथा में उल्लेख नहीं किया गया हो ? प्रतिमाओं के नाम दंसण-वय- सामाइय पोसह - पडिमा - अबंभ - सच्चित्ते । आरंभ-पेस- उद्दिट्ठ- वज्जए समणभूए य ॥११॥ इक्कारस पडिमाओ, वीसं परियाओ अणसणं मासे । सोहम् उपलिया, महाविदेहंमि सिज्झिहि ॥ १२ ॥ अर्थ १. दर्शन २. व्रत ३ सामायिक ४ पौषध ५. कायोत्सर्ग ६. ब्रह्मचर्य ७. सचित्त आहार-त्याग ८. स्वयं आरम्भ - वर्जन ६. भृतक प्रेष्यारंभ वर्जन १०. उद्दिष्टभक्त वर्जन और ११. श्रमणभूत प्रतिमा। ये ग्यारह श्रावक प्रतिमाओं के नाम हैं। अंत में इन दसों श्रावकों की श्रावक पर्याय बीस वर्ष की थी। एक मास की संलेखना तथा अनशन द्वारा देह त्याग किया। सौधर्म देवलोक में चार-चार पल्योपम की आयु वाले देवों के रूप में उत्पन्न हुए। देव भव के अनन्तर सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और मोक्ष प्राप्त करेंगे। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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