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आठवां अध्ययन - श्रमणोपासक महाशतक - महाशतक तुम प्रायश्चित्त लो १६५ --- ----------*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-12-22-28-02-08समणोवासयपरियायं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहिँ भत्ताई अणसणाए छे देत्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडिंसए विमाणे देवत्ताए उववण्णे। चत्तारि पलिओवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ॥ णिक्खेवो॥
॥अट्ठमं अज्झयणं समत्तं॥ : .. भावार्थ - उन महाशतक श्रमणोपासक ने श्रावक के बहुत-से व्रत एवं तपश्चर्या से आत्मा को भावित किया और बीस वर्ष की श्रावक-पर्याय का तथा ग्यारह उपासक-प्रतिमाओं का यथारीति सम्यक् पालन-स्पर्शन किया। मासिकी संलेखना से शरीर और कषायों को क्षीण करके मृत्यु के अवसर पर आलोचना प्रतिक्रमण कर, समाधिपूर्वक काल कर के सौधर्म देवलोक के अरुणावतंसक विमान में उत्पन्न हुए, जहाँ चार पल्योपम तक देव-स्थिति का उपभोग कर वे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त होंगे।
श्री सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से श्री उपासकदशांग । सूत्र के अष्टम अध्ययन के जो भाव मैंने सुने, वे ही तुम्हें कहे हैं।
विवेचन - इस अध्ययन में विचारणा के लिए अनेक दृष्टिकोण उपलब्ध हैं - वेदमोहनीय की विचित्रता, आहार का वेदोदय के साथ सम्बन्ध, आहार का चित्तवृत्ति के साथ सम्बन्ध, ज्ञान होने पर भी कषायोदय से अविवेकपूर्ण भाषण आदि।
॥ आठवां अध्ययन समाप्त॥
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