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________________ पंचमं अज्ायणं - पांचवां अध्ययन श्वमणोपासक चुल्लशतक (३५) उक्खेवो पंचमस्स। एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया णामं णयरी। संखवणे उजाणे। जियसत्तू राया। चुल्लसयए गाहावई (परिवसइ), अढे जाव छ हिरण्णकोडीओ जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। बहुला भारिया। सामी समोसढे। जहा आणंदो तहा (धम्मं सोच्चा) गिहिधम्म पडिवजइ, सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। ___ भावार्थ - पांचवें अध्ययन का प्रारंभ। हे जंबू! उस काल उस समय में जब भगवान् महावीर स्वामी विचर रहे थे, आलभिका नामक नगरी के बाहर शंखवन नामक उद्यान था, जितशत्रु राजा राज्य करता था। 'चुल्लशतक' नामक ऋद्धिसम्पन्न गाथापति रहता था। उसके छह करोड़ का धन निधान में, छह करोड़ का व्यापार में, छह करोड़ की घर-बिखरी व दस हजार गायों का एक वज्र, ऐसे छह. वज्र थे। भगवान् आलभिका नगरी पधारे। चुल्लशतक ने धर्म सुन कर आनन्दजी की भाँति श्रावकव्रत धारण किए। कामदेव की भाँति पौषधयुक्त होकर भगवान् द्वारा बताई गई धर्म-विधि अनुसार पालन करने लगा। (३६) तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं जाव असिं गहाय एवं वयासी-हं भो चुल्लसयगा समणोवासया! जाव ण भंजसि तो ते अज्ज जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ णीणेमि, एवं जहा चुलणीपियं, णवरं एक्केक्के सत्त मंससोल्लया जाव कणीयसं जाव आयंचामि। भावार्थ - आधी रात के समय एक देव चुल्लशतक के समक्ष प्रकट हुआ यावत् तलवार लेकर इस प्रकार बोला - हे चुल्लशतक श्रमणोपासक! यदि तूने श्रावक व्रतों का परित्याग नहीं किया तो आज तेरे ज्येष्ठ पुत्र को घर से रठा लाऊँगा यावत् चुलनीपिता के साथ जैसा हुआ था Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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