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________________ द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - देवकृत उपसर्ग ८१ चेव वत्तव्वया जाव जेट्टपुत्तं मित्तणाई (आपुच्छइ) आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जहा आणंदो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ। कठिन शब्दार्थ - धम्मपण्णत्तिं - धर्मप्रज्ञप्ति - निवृत्तिमय धर्म साधना, धर्मशिक्षा के अनुरूप उपासना। ___ भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी चम्पा पधारे। परिषद् धर्म सुनने के लिए गई। आनन्द के समान कामदेव भी गए, यावत् श्रावक व्रत ग्रहण किए। कालान्तर में ज्येष्ठ-पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर पौषधशाला में भगवान् द्वारा बताई गई धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार कर धर्म-साधना करने लगे। देवकृत उपसर्ग - पिशाच रूप (१७) तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छद्दिट्ठी अंतियं पाउन्भूए। तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ। तस्स णं देवस्स पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते। - कठिन शब्दार्थ - मायीमिच्छद्दिट्ठी - मायी मिथ्यादृष्टि, पाउन्भूए - प्रकट हुआ, पिसायरूवं - पिशाच रूप की, विउव्वइ - विकुर्वणा, वण्णावासे - वर्णन। भावार्थ - तदनन्तर उस कामदेव श्रमणोपासक के पास मध्य रात्रि के समय एक मायी मिथ्यादृष्टि देव प्रकट हुआ। उसने एक विशाल पिशाच रूप की विकुर्वणा की। उस पिशाच का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है - सीसं से गोकिलंजसंठाणसंठियं, सालिभसेल्लसरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, महल्लउट्टियाकभल्लसंठाणसंठियं णिडालं मुगुंसपुंछं व तस्स भुमगाओ फुग्गफुग्गाओ विगयबीभच्छदंसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगयबीभच्छदसणाई। कण्णा जह सुप्पकत्तरं चेव विगयबीभच्छदंसणिज्जा, उरब्भपुडसण्णिभा से णासा, झुसिरा जमलचुल्लीसंठाणसंठिया दोऽवि तस्स णासापुडया, घोडयपुंछं व तस्स मंसूई कविलकविलाई विगयबीभच्छदसणाई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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