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________________ [10] H बत्तीसी प्रकाशन योजना के अनुसार मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ एवं विवेचन सहित तैयार किया। इसके पश्चात् मैंने भी इसका अवलोकन किया। प्रस्तुत आगम की भाषा सरल है, जिसे सामान्य जानकार साधक भी आसानी से पढ़ कर हृदयंगम कर सकता है। इसके प्रकाशन के अर्थ सहयोगी एक गुप्त साधर्मी बन्धु है। आप स्वयं का नाम देना तो दूर अपने गांव का नाम देना भी पसन्द नहीं करते। आप संघ द्वारा प्रकाशित होने वाले अन्य प्रकाशन जैसे तेतली-पुत्र, बड़ी साधु वंदना, स्वाध्याय माला, अंतगडदसा सूत्र में भी सहयोग दे चुके हैं। इसके अलावा कितनी ही बार सम्यग्दर्शन अर्द्ध मूल्य योजना में सहकार देकर अनेक साधर्मी बन्धुओं को सम्यग्दर्शन मासिक पत्र अर्द्ध मूल्य में ग्राहक बनने में सहयोगी बने हैं। दो साल पूर्व संघ द्वारा लोंकाशाह मत समर्थन, जिनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा, मुखवस्त्रिका सिद्धि एवं विद्युत बादर तेउकाय है प्रकाशित हुई तो आपने इन चार पुस्तकों के सेट को अपनी ओर से लगभग पांच सौ संघों को फ्री भिजवाये। इस प्रकार आप एकदम मक अर्थसहयोगी है। आप संघ के प्रत्येक प्रकाशन में मुक्त हस्त से सहयोग देने के लिये तत्पर रहते हैं। ऐसे उदारमना गुप्त अर्थ सहयोगी पर संघ को गौरव है। संघ आपका हृदय से आभार मानता है। आप चिरायु रहे आपकी यह. शुभ भावना उत्तरोत्तर वृद्धिंगत रहे। इसी मंगल कामना के साथ। ___पाठक बन्धुओं के समक्ष यह प्रकाशन अपने नूतन परिवेश में प्रस्तुत किया जा रहा है। कृपया इसका अवलोकन करावें और जहाँ सुज्ञ पाठक वर्ग को कहीं त्रुटि ध्यान में आवे हमें सूचित करने की कृपा करावें, हम उनके आभारी होंगे। जैसा कि पाठक बन्धुओं को मालूम ही है कि वर्तमान में कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्य में काफी वृद्धि हो चुकी है। फिर भी दानदाता के आर्थिक सहयोग से इसका मूल्य मात्र बीस रुपया ही रखा गया है जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ज्यादा नहीं है। पाठक बन्धु इसका अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। . इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राज.) संघ सेवक दिनांकः १०-११-२००४ नेमीचन्द बांठिया अ. भा. सु. जैन सं. र. संघ, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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