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नरक का वर्णन ***** ***************************************************** और मांस के ढेरों से वहाँ का स्थान अत्यन्त घृणास्पद है तथा पीप और रक्त के बहने से भूमि गीली और चिकनी हो गई है और वह स्थान कीचड़ से परिपूर्ण हो गया है। कुकूलाणलपलित्तजालमुम्मुत्तरअसिक्खुर-करवत्तधारासुणिसियविच्छुयडंक णिवायोवम्म-फरिसअइदुस्सहेसु - वहाँ का स्पर्श धधकती हुई करीष की आग अथवा खेर की आग के समान अत्यन्त उष्ण और तलवार, उस्तरे तथा करवत की धार के समान तीक्ष्ण और बिच्छु के डंक से उत्पन्न वेदना से भी अत्यन्त दुःखदायक है, . अताणा - त्राण-रक्षण से रहित, असरणा - शरण-आश्रय से रहित, कडुयदुक्खपरितावणेसु - वहां अत्यन्त कटु लगने वाले ऐसे दारुण दुःख से जीव दुःखी रहते हैं, अणुबद्धणिरंतरवेयणेसु - वहाँ निरन्तर अत्यन्त वेदना होती रहती है, जमपुरिससंकुलेसु - वहाँ यम-पुरुष-परमाधामी देव सर्वत्र भरे रहते हैं।
भावार्थ - वे हिंसक लोग, मनुष्य-भव के आयुष्य का क्षय होने पर, अपने मनुष्य-भव से गिरकर अशुभ कर्म की अधिकता से शीघ्र ही नरक में उत्पन्न हो जाते हैं। वे महानरक बहुत लम्बे चौड़े हैं। उनकी भींत वज्रमय हैं। उस भीत में न तो कहीं कोई छिद्र है और न कहीं कोई सन्धिवाली पतली-सी दरार ही है। उसके द्वार भी नहीं है। वह नरकभूमि बड़ी कठोर, कर्कश और रूक्ष स्पर्श वाली है। नारक जीवों का वहाँ का उत्पत्ति-स्थान और आवास महाविषम एवं बन्दीगृह के समान है। वे नरकावास सदैव अत्यन्त उष्ण और तप्त रहते हैं। वहाँ जीव को उद्विग्न कर देने वाली तीव्र दुर्गन्ध है। वहाँ का दृश्य बड़ा ही भयानक है। वहाँ कई स्थानों पर हिम-पटल के समान अत्यन्त शीत है। वे नरकावास अत्यन्त काले, महाभयंकर, गंभीर और रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। नरकावास अरमणीय-घृणित हैं। वहाँ नारक जीवों को ऐसी व्याधियाँ और रोग लगते हैं कि जिनका कोई उपचार ही नहीं है। अत्यन्त घनघोर अन्धकार वहाँ छाया रहता है। वहाँ का स्थान भय से परिपूर्ण रहता है। उन नरकावासों में चन्द्र, सूर्य, ग्रह और नक्षत्रों की ज्योति (एक किरण भी) नहीं पहुँच पाती। वह स्थान मेद, वसा, मांस, रक्त और पीप आदि घृणित वस्तुओं से भरा हुआ है और वहाँ की भूमि पर रक्त, मांस और चर्बी आदि का कीच मचा हुआ है। नरकावास की भूमि का स्पर्श धधकते हुए अंगारे जैसा असह्य उष्ण, तलवार, उस्तरे और आरी की धार के समान तीक्ष्ण और बिच्छ दंश से उत्पन्न वेदना से भी अत्यन्त दुःखदायक है। वहाँ न कोई रक्षक है, न शरणदाता। नारक जीव वहाँ दारुण दुःख से दु:खी. रहते हैं। ऐसी उग्र वेदना वहाँ निरन्तर होती रहती है। वहाँ परमाधामी देव भी बहुत हैं। वे भी नारक जीवों को दुःख देते रहते हैं।
. विवेचन - घोर पापियों और जीवों की हत्या, ताड़न, पीड़न और कदर्थन में ही आनन्द मानने वाले मनुष्यों के लिए पाप का दुःखदायक परिणाम भोगने का स्थान नरक और तिर्यंच गति है। मनुष्यों की आयु कम होती है। किन्तु अपनी कम आयु में भी कई मनुष्य जीवन भर पाप ही पाप करते रहते हैं। पूर्व पुण्य के उदय से इस मनुष्य-जन्म में उन्हें अपने पाप का फल नहीं भोगना पड़े, तो अन्य ऐसा कोई स्थान अवश्य होना चाहिए-जहाँ उनके पापों का फल मिल सके।
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