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________________ 288 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०४ ********************************************************** ***** आगमन का अवरोधक तथा संक्लेश से रहित है। यह भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी जिनेश्वरों भगवंतों द्वारा आज्ञापित-उपदिष्ट है। एवं चउत्थं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं आणाए अणुपालियं भवइ। एवं णायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्ध सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं। तिबेमि॥ चउत्थं संवरदारं सम्मत्तं शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, चउत्थं - चतुर्थ, संवेरदार - संवरद्वार, फासियं - स्पृष्ट, पालियं - पालित, सोहियं - शोभित, तीरियं - तारित, किट्टियं - कीर्तित, आराहियं - आराधित, भवइ - होता है, एवं - इस प्रकार, णायमुणिणा भगवया - ज्ञातृकुलोत्पन्न भगवान् महावीर स्वामी ने, पण्णवियं - कहा है, परूवियं - प्ररूपणा की, पसिद्धं - प्रसिद्ध, सिद्धं - सिद्ध, सिद्धवरसासणमिणं - अपने कार्य को सिद्ध करने वाले तीर्थंकर भगवान् की प्रधान आज्ञा, आघवियं - सम्यक् प्ररूपणा, सुदेसियं - भली प्रकार उपदेशित, पसत्थं - प्रशस्त, चउत्थं - चतुर्थ, संवरदारं - संवरद्वार, सम्मत्तं - समाप्त हुआ, त्तिबेमि - ऐसा मैं कहता हूँ। भावार्थ - इस प्रकार इस चतुर्थ संवरद्वार का स्पर्शन, पालन एवं शोभन होता है, पार पहुंचाया जाता है, कीर्तित एवं आराधित होता है और जिनेश्वर की आज्ञा के अनुसार अनुपालित होता है। इस प्रकार ज्ञातृ-कुलोत्पन्न भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है, प्ररूपित किया है। यह मार्ग विश्व में प्रसिद्ध है, प्रमाणों से सिद्ध है। समस्त प्रयोजन सिद्ध करने वाले ऐसे तीर्थंकर भगवंत की यह प्रधान आज्ञा है। भगवान् द्वारा प्ररूपित है, उपदेशित है एवं प्रशस्त है। यह चतुर्थ संवरद्वार पूर्ण हुआ-ऐसा मैं कहता हूँ। // ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ संवरद्वार समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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