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________________ अहिंसा भगवती के साठ नाम 205 **************************************************************** दुहसयविमोयणगाइं सुहसयपवत्तणगाइं कापुरिसदुरुत्तराई सप्पुरिसणिसेवियाई णिव्वाणगमणसग्गप्पयाणगाइं संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया। शब्दार्थ - ताणि - वे, इमाणि - ये, सुव्वय - है सुव्रत-अच्छे व्रतों के धारक, महव्वयाइं - महाव्रत कहलाते हैं, लोयहियसव्वयाई - समस्त लोक के लिए हितप्रद, सुयसागरदेसियाई - शास्त्र रूपी सागर से उपदिष्ट, तवसंजममहव्वयाइं - ये तप संयम और महाव्रत रूप हैं, सीलगुणवरव्वयाई - शील और उत्तम गुणों में प्रधान, सच्चज्जवव्वयाइं - सत्य भाषण और आर्जव-सरलता रूप, णरयतिरियमणुयदेवगइविवजगाई - नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति को वर्जित करने वाले-मोक्ष देने वाले, सव्वजिणसासणगाइं - सभी जिनेश्वर भगवंतों ने इनकी शिक्षा दी है, कम्मरयविदारगाइं - कर्मरूपी रज को नष्ट करने वाले, भवसयविणासगाई - सैकड़ों भवों को नाश करने वाले, दुहसयविमोयणगाई - सैकड़ों दुःखों को मिटाने वाले, सुहसयपवत्तणगाइं - सैकड़ों सुखों के दाता, कापुरिसदुरुत्तराई - कायर पुरुषों के लिए दुस्तर है, सप्पुरिसणिसेवियाई - सत्पुरुषों द्वारा सेवित, णिव्वाणगमणसग्गप्पयाणगाई - मोक्ष तथा स्वर्ग के दाता, संवरदाराई - संवर द्वार, पंच - पाँच, कहियाणि.- कहे हैं, भगवया - भगवान् महावीर स्वामी ने। ... भावार्थ - गणधर भगवान् सुधर्मा स्वामीजी म० श्री जम्बू स्वामीजी से कहते हैं कि-हे उत्तम व्रतों के धारक जम्बू! ये पाँच संवर रूपी महाव्रत, समस्त लोक के लिए हितकारी एवं मंगलकारी हैं। श्रुतसागर में इन महाव्रतों का उपदेश हुआ है। ये पांचों तप संयम और. महाव्रत रूप हैं। शील एवं उत्तम गुणों का समूह इनमें रहा हुआ है। सत्य वचन एवं आर्जवता (सरलता) युक्त ये व्रत नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति को रोककर मुक्ति प्रदान करने वाले हैं। सभी जिनेश्वर भगवंतों ने इनकी शिक्षा प्रदान की है। ये संवर, कर्म रूपी रज को नष्ट करने वाले हैं। ये सैंकड़ों भवों का छेदन कर सैकड़ों दुःखों को मिटाने वाले हैं और सैकड़ों प्रकार के सुखों को प्रदान करते हैं। इन महाव्रतों को कायर जन धारण नहीं कर सकते। इनका पालन सत्पुरुष ही कर सकते हैं। ये पाँचों महाव्रत मोक्ष एवं स्वर्ग के प्रदाता हैं। इन पाँच महाव्रतों का उपदेश भगवान् महावीर स्वामी ने दिया है। विवेचन - प्रश्नव्याकरण सूत्र के संवर द्वार' नामक दूसरे श्रुतस्कंध का प्रारम्भ करते हुए तीन गाथाओं और उपरोक्त सूत्र में संवर द्वार का संक्षिप्त कथन करके संवर आराधना का महत्त्व बताया है। आत्मोत्थान का अमोघ उपाय सूत्रकार ने इन थोड़े शब्दों में व्यक्त कर दिया है। अहिंसा भगवती के साठ नाम - तत्थ पढमं अहिंसा जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स भवइ दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा 1. णिव्वाणं२. णिव्वुई 3. समाही 4. सत्ती 5. कित्ती 6. कंती 7. रई य 8. विरई य 9. सुयंग 10. तित्ती 11. दया 12. विमुत्ती 13. खंती 14. सम्मत्ताराहणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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