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________________ प्राण-वध के नाम ******************************** ******************* शब्दार्थ - तस्स - इस प्राणी-वध के, गोण्णाणि - गुण-निष्पन्न, णामाणि - नाम, तीसं - तीस, होति- है, इमाणि - ये, तं जहा - इस प्रकार हैं। १. पाणवहं - प्राण-वध, जीवघात, आत्मा को प्राणों से रहित करना। २. उम्मूलणा सरीराओ - शरीर से प्राणों का उन्मूलन करके पृथक् करना। पृथ्वी से वृक्ष को उखाड़कर फेंकने के समान शरीर से आत्मा को निकाल कर भिन्न करना। ३. अवीसंभो - अविश्रंभ - जीवों के लिए अविश्वास के योग्य। हिंसा ऐसा कार्य है कि जिसके करने वाले-हिंसक के प्रति विश्वास नहीं रहता।। ४. हिंसविहिंसा - हिंस्य (हिंसा के योग्य) जीवों के प्राणों का विनाश। ५. अकिच्छ - अकृत्य, नहीं करने योग्य, अनाचरणीय। ६. घायणा - घातना, प्राणियों का घात करना। ७. मारणा - मारण, मृत्यु प्राप्त कराना। ८. वहणा - वध करना, हनन करना, प्राणों को पीड़ित करना। ९. उद्दवणा - उपद्रवणा, उपद्रव करना या उत्पात करना। ... १०. णिवायणा - निपातना-प्राणों को जीव से पृथक् करना। किसी के प्रति में 'तिवायणा' पाठ भी है, जिसका अर्थ-मन, वचन और काया इन तीन से अथवा शरीर, आयु और इन्द्रिय से जीव का पतन करना-रहित करना। ११. आरंभसमारंभो - आरम्भ-समारम्भ। कृषि आदि कार्यों के द्वारा जीवों की विराधना करना। १२. आउयकम्मस्सुवहयो भेयणिट्ठवणगालणा य संवट्टगसंखेवो - जीव के आयुकर्म को उपद्रव करके चलित करना, भेद न करना-तोड़ना या समाप्त कर देना अथवा संक्षिप्त कर देना। ____१३. मच्चू - मृत्यु। प्राण-वध का अंतिम रूप मृत्यु ही है। १४. असंजमो - असंयम, प्राण-वध स्वतः असंयम है। सतरह प्रकार के असंयम से प्राण-वध मुख्य है। १५. कंडगमद्दण - कटक-मर्दन, सेना द्वारा आक्रमण करके जीवों का मर्दन (संहार) करना। १६. वोरमणं - व्युपरमण, प्राणों को शरीर से भिन्न करना। १७. परभव संकामकारओ - परभव संक्रामकारक, प्राणियों को मार कर परभव में पहुंचाने वाला। १८. दुग्गइप्पवाओ - नरकादि दुर्गति में गिराने वाला। १९. पावकोवो - पापकोप, पाप प्रकृतियों का पोषण करने वाला। समस्त पापों को उत्पन्न करने वाला अथवा पाप रूप कोप-क्रोध का उत्पादक। . २०. पावलोभो - पाप-लोभ, आत्मा की पाप से प्रीति बढ़ाने वाला। २१. छविच्छेओ - शरीर का छेदन करने वाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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